ना तो मने दुःखी करे क्यम मर्मभेदी,
एही अनर्थ उदयागत, विश्ववेदी! ३६
❋ धार्यो न में हृदये तने ❋
पूज्यो छतां श्रुत छतां निरख्यो छतांय,
धार्यो न भक्तिथी तने मुज चित्तमांय;
तेथी थयो हुं दुःखभाजन जिनराय!
ना भावविहीन क्रिया फलवंत थाय. ३७
❋ छोडाव दुःख थकी मने ❋
हे नाथ! दुःखीजनवत्सल! हे शरण्य!
कारुण्यपुण्यगृह! संयमीमां अनन्य!
भक्तिथी हुं नत प्रति धरी तुं दयाने,
था देव! तत्पर दुःखांकुर छेदवाने! ३८
निःसंख्य सत्त्वगृह, ख्यात प्रभाववाळा,
ने शत्रुनाशक शरण्य अहो! तमारां
पादाब्ज शर्ण लई जो छउं ध्यान वंध्य,
तो नष्ट हुं, भुवनपावन ! हुं ज वंध्य. ३९
देवेन्द्रवंद्य! विभु! वस्तुरहस्यजाण!
संसारतारक! जगत्पति! जिनभाण!
रक्षो मने भयद दुःखसमुद्रमांथी,
आजे करुणहृद! पुण्य करो दयाथी. ४०.
स्तवन मंजरी ][ २९