Shri Jinendra Stavan Manjari-Gujarati (Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


Page 30 of 438
PDF/HTML Page 48 of 456

 

background image
हो तुं ज शर्ण भवेभवे!
तारां पदाब्जतणी संततिथी भरेली,
भक्तितणुं कंईय जो फल विश्वबेली!
तो तुं ज एक शरणुं बस एह मुज,
हो शर्ण आ भवभवांतरमांय तुं ज! ४१
स्तोत्रमाहात्म्य, उपसंहार
रे! आम विधिथी समाधिमने उमंगे,
रोमांच कंचुक धरी निज अंग अंगे;
सद्दबिम्ब निर्मल मुखांबुज द्रष्टि बांधी,
भव्यो रचे स्तवन जे तुज भक्ति सांधी. ४२
ते हे जिनेन्द्र! जयनेत्र ‘कुमुदचंद्र’!
ह्यां भोगवी स्वरग संपदवृंद चंग;
निःशेष कर्ममल संचय साव वामे,
ने शीघ्र तेह भगवन्! शिवधाम पामे. ४३
श्री समन्तभद्राचार्य विरचित
स्वयंभूस्तोत्र
(१) श्री आदिनाथस्तुति
(गीता छंद)
जो हुए है अरहंत आदि, स्वयं बोध सम्हारके,
परम निर्मल ज्ञान चक्षु, प्रकाश भवतम हारके;
३० ][ श्री जिनेन्द्र