निज पूर्ण गुणमय वचन करसे, जग अज्ञान मिटा दिया,
सो चंद्र सम भवि जीव हितकर, जगतमांहि प्रकाशिया. १
सो प्रजापति हो प्रथम जिसने, प्रजाको उपदेशिया,
असि कृषि आदि कर्मसे, जीवन उपाय बता दिया;
फिर तत्त्वज्ञानी परम विद, अद्भुत उदय धर्तारने,
संसार भोग ममत्व टाला, साधु संयम धारने. २
इन्द्रियजयी, इक्ष्वाकुवंशी मोक्षकी इच्छा करे,
सो सहनशील सुगाढ व्रतमें साधु संयमको धरे;
निज भूमि महिला त्यागदी जो थी सती नारी समा,
यह सिंधु जल है वस्त्र जिसका और छोडी सब रमा. ३
निज ध्यान अग्नि प्रभावसे रागादि मूलक कर्मको,
करुणा विगर है भस्म कीने चार घाती कर्मको;
अरहंत हो जग प्राणि हित सत् तत्त्वका वर्णन किया,
फिर सिद्ध हो निज ब्रह्मपद अमृतमई सुख नित पिया. ४
जो नाभिनंदन वृषभ जिन सब कर्म मलसे रहित हैं,
जो ज्ञान तन धारी प्रपूजित साधुजन कर सहित हैं;
जो विश्वलोचन लघु मतों को जीतते निज ज्ञानसे,
सो आदिनाथ पवित्र कीजे आत्म मम अघ खानसे. ५
(२) श्री अजितनाथ – स्तुति
(मालिनी छंद)
❋
दिविसे प्रभु आकर जन्म जब मात लीना,
घरके सब बन्धू मुखकमल हर्ष कीना;
❋ स्वर्गसे
स्तवन मंजरी ][ ३१