Shri Jinendra Stavan Manjari-Gujarati (Devanagari transliteration).

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निज पूर्ण गुणमय वचन करसे, जग अज्ञान मिटा दिया,
सो चंद्र सम भवि जीव हितकर, जगतमांहि प्रकाशिया.
सो प्रजापति हो प्रथम जिसने, प्रजाको उपदेशिया,
असि कृषि आदि कर्मसे, जीवन उपाय बता दिया;
फिर तत्त्वज्ञानी परम विद, अद्भुत उदय धर्तारने,
संसार भोग ममत्व टाला, साधु संयम धारने.
इन्द्रियजयी, इक्ष्वाकुवंशी मोक्षकी इच्छा करे,
सो सहनशील सुगाढ व्रतमें साधु संयमको धरे;
निज भूमि महिला त्यागदी जो थी सती नारी समा,
यह सिंधु जल है वस्त्र जिसका और छोडी सब रमा.
निज ध्यान अग्नि प्रभावसे रागादि मूलक कर्मको,
करुणा विगर है भस्म कीने चार घाती कर्मको;
अरहंत हो जग प्राणि हित सत् तत्त्वका वर्णन किया,
फिर सिद्ध हो निज ब्रह्मपद अमृतमई सुख नित पिया.
जो नाभिनंदन वृषभ जिन सब कर्म मलसे रहित हैं,
जो ज्ञान तन धारी प्रपूजित साधुजन कर सहित हैं;
जो विश्वलोचन लघु मतों को जीतते निज ज्ञानसे,
सो आदिनाथ पवित्र कीजे आत्म मम अघ खानसे.
(२) श्री अजितनाथस्तुति
(मालिनी छंद)
दिविसे प्रभु आकर जन्म जब मात लीना,
घरके सब बन्धू मुखकमल हर्ष कीना;
स्वर्गसे
स्तवन मंजरी ][ ३१