Shri Jinendra Stavan Manjari-Gujarati (Devanagari transliteration).

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तुम भिन्न मतोंमें नाहि बने,
सब कारज कारक तत्त्व घने. २१
है तत्त्व अनेक व एक वही,
तत्त्व भेद अभेदहि ज्ञान सही;
उपचार कहो तो सत्य नहीं,
इक हो अन ना वक्तव्य नहीं. २२
है सत्त्व असत्त्व सहित कोई नय,
तरु पुष्प रहे न हि व्योम कलप;
तव दर्शन भिन्न प्रमाण नहीं,
स्व स्वरूप नहीं कथमान नहीं. २३
जो नित ही होता नाश उदय,
नहिं, हो न क्रिया, कारक न सधय;
सत् नाश न हो नहिं जन्म असत्,
जु प्रकाश गए पुद्गल तम सत्. २४
विधि वा निषेध सापेक्ष सही,
गुण मुख्य कथन स्याद्वाद यही;
इम तत्त्व प्रदर्शी आप सुमति,
थुति नाथ करूं हो श्रेष्ठ सुमति. २५
(६) श्री पद्मप्रभ जिनस्तुति
(मुक्तादाम छंद)
पदमप्रभ पद्म समान शरीर,
शुचि लेश्याधर रूप गंभीर;
स्तवन मंजरी ][ ३५