Shri Jinendra Stavan Manjari-Gujarati (Devanagari transliteration).

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आत्ममय ध्यानकी, सिद्धिके कारणे,
होय निर्ग्रंथ पर, दोय विधि टारणे. १६
तन अचेतन यही, और तिस योगते,
प्राप्त संबंधमें, आपपन मानते;
जो क्षणिक वस्तु है, थिरपना देखते,
नाश जग देख प्रभु, तत्त्व उपदेशते. १७
क्षुत त्रषा रोग प्रतिकार बहु ठानते,
अक्ष सुख भोग कर तृप्ति नहिं मानते;
थिर नहीं जीव तन हित न हो दौडना,
यह जगत्रूप भगवान विज्ञापना. १८
लोलुपी भोग जन, नहिं अनीति करे,
दोषको देख जग, भय सदा उर धरे;
है विषय मग्नता, दोउ भव हानिकर,
सुज्ञ क्यों लीन हो, आप मत जानकर. १९
है विषयलीनता, प्राणिको तापकर,
है तृषा वृद्धिकर, हो न सुखसे वसर;
हे प्रभो! लोकहित, आप मत मानके,
साधुजन शर्ण ले, आप गुरु मानके. २०
(५) श्री सुमतितीर्थंकरस्तुति
(तोटक छंद)
मुनि नाथ सुमति सत् नाम धरे,
सत् युक्तिमई मत तुम उचरे;
३४ ][ श्री जिनेन्द्र