Shri Jinendra Stavan Manjari-Gujarati (Devanagari transliteration).

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तप्त शांत नहि तृष्णा बधती,
स्वस्थ रहे नित मनसा सधती. ३१
जिम जड यंत्र पुरुषसे चलता,
तिम यह देह जीवधृत पलता;
अशुचि दुखद दुर्गंध कुरूपी,
यामें राग कहा दुखरूपी. ३२
यह भवितव्य अटल बलधारी,
होय अशक्त अहं मतिकारी;
दो कारण विन कार्य न राचा,
केवल यत्न विफल मत राचा. ३३
डरत मृत्युसे तदपि टलत ना,
नित हित चाहे तदपि लभत ना;
तदपि मूढ भयवश हो कामी,
वृथा जलत हिय हो न अकामी. ३४
सर्व तत्त्वके आप हि ज्ञाता,
मात बालवत् शिक्षा दाता;
भव्य साधुजनके हो नेता,
मैं भी भक्ति सहित थुति देता. ३५
(८) श्री चन्द्रप्रभ तीर्थंकरस्तुति
(भुजंगप्रयात छंद)
प्रभू चन्द्रसम शुक्ल वर वर्णधारी,
जगत नित प्रकाशित परम ज्ञानचारी;
स्तवन मंजरी ][ ३७