श्री सीमंधर जिन – स्तवन
(राग — धनाश्री, देशी – अखियनमें अविकारा)
मूरती मोहनगारी सीमंधरजिन, मूरती मोहनगारी. (टेक)
अनंत ज्ञान ने दर्शने भरिया, लागुं हुं लळी लळी पाय,
अनंत चारित्रगुणना भंडार, लागुं हुं लळी लळी पाय...सी० १
अनंतबली ने आतमरामी, लागुं हुं लळी लळी पाय;
जगत-जीवना छो उपकारी, लागुं हुं लळी लळी पाय...सी० २
रूप मनोहर, वंदित सुरनर, लागुं हुं लळी लळी पाय;
सकळ दोषथी रहित जिनवर, लागुं हुं लळी लळी पाय...सी० ३
सर्व गुणे संपन्न वीतराग लागुं हुं लळी लळी पाय;
शुद्ध धर्मनो प्रचार करनार, लागुं लळी लळी पाय....सी० ४
शशि शीतळ सम शांतिविधाता, लागुं लळी लळी पाय;
तुज सेवकनां दुःखो हरनारा, लागुं लळी लळी पाय.....सी० ५
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श्री पद्मनाथ जिन – स्तवन
(राग – मेरी अरजी उपर)
शांत मूर्ति पद्म प्रभु नमन करुं,
देव कृपानिधि मुज सुख करुं....(टेक)
तुंही राजा तुंही पिता, तुंही तारणहार छे;
तुंही भ्राता तुंही पालक, तुंही रक्षणहार छे;
तुंही नाम रटण दिनरात करुं.....शांत० १
७८ ][ श्री जिनेन्द्र