Swami Kartikeyanupreksha-Gujarati (Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


Page 168 of 297
PDF/HTML Page 192 of 321

 

background image
१६८ ]
[ स्वामिकार्त्तिकेयानुप्रेक्षा
न जाय माटे ‘वस्तु स्यात् अस्तिनास्ति-अवक्तव्य छे.’ ए प्रमाणे सात
ज भंग कोई प्रकारथी संभवे छे. अने ए ज रीते एकत्व, अनेकत्व आदि
सामान्य धर्मो उपर सात भंग विधि
निषेधपूर्वक लगाववा. ज्यां जेवी
अपेक्षा संभवित होय त्यां तेवी लगाववी.
वळी ए ज प्रमाणे जीवत्व आदि विशेष धर्मोमां पण (सात सात
भंग) लगाववा. जेम जीव नामनी वस्तु उपर ‘स्यात् जीवत्व, स्यात्
अजीवत्व’ इत्यादि प्रकारे लगाववा. त्यां अपेक्षा आ प्रमाणे छे के
पोतानो जीवत्वधर्म पोतानामां छे माटे जीवत्व छे, पण पर अजीवनो
अजीवत्व धर्म तेमां नथी, तथा अन्य धर्मने मुख्य करी कहीए तो तेनी
अपेक्षाए अजीवत्व छे इत्यादि प्रकारथी लगाववा. तथा जीव अनंत छे
एनी अपेक्षाए पोतानुं जीवत्व पोतानामां छे अने परनुं जीवत्व तेमां नथी
तेथी ए अपेक्षाए अजीवत्व छे एम पण साधी शकाय छे. इत्यादि
अनादिनिधन अनंत जीव
अजीव वस्तु छे, ते सर्वमां पोतपोताना
द्रव्यत्वपर्यायत्व आदि अनंत धर्म छे, ते सर्व सहित सप्तभंग साधवा.
वळी तेना स्थूल पर्याय छे ते पण चिरकाळस्थायी अनेक धर्मरूप होय छे,
जेम के जीव संसारी
सिद्ध. संसारीमां त्रस अने स्थावर, तेमां मनुष्य
तिर्यंच आदि, पुद्गलमां पण अणु-स्कंध, घट-पट आदि. हवे तेमां पण
कथंचित् वस्तुपणुं संभवे छे; ए पण उपर प्रमाणे सप्तभंगथी साधवा.
वळी ए ज प्रमाणे जीव-पुद्गलना संयोगथी थयेला आस्रव, बंध, संवर,
निर्जरा, पुण्य, पाप अने मोक्ष आदि भावमां पण बहुधर्मपणानी
अपेक्षाए तथा परस्पर विधि
निषेधथी अनेक धर्मरूप कथंचित् वस्तुपणुं
संभवे छे. ए सर्व पण सप्तभंगथी साधवा.
जेम एक पुरुषमां पितापणुं, पुत्रपणुं, मामापणुं, भाणेजपणुं,
काकापणुं अने भत्रिजापणुं आदि धर्म होय छे ते पोतपोतानी अपेक्षाए
विधि-निषेधपूर्वक सात भंग द्वारा जाणवा. आ नियमथी जाणवुं के
वस्तुमात्र अनेक धर्मस्वरूप छे. ते सर्वने जे अनेकान्त जाणी श्रद्धान करे
तथा ए ज प्रमाणे लोकमां व्यवहार प्रवर्तावे ते सम्यग्द्रष्टि छे. जीव,
अजीव, आस्रव, बंध, पुण्य, पाप, संवर, निर्जरा अने मोक्ष ए नव