Swami Kartikeyanupreksha-Gujarati (Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


Page 169 of 297
PDF/HTML Page 193 of 321

 

background image
धर्मानुप्रेक्षा ]
[ १६९
पदार्थ छे, तेमने उपर प्रमाणे ज सात भंगथी साधवा. तेनुं साधन
श्रुतज्ञानप्रमाण छे, तेना भेद द्रव्यार्थिक
पर्यायार्थिक छे अने तेना पण भेद
नैगम, संग्रह, व्यवहार, ॠजुसूत्र, शब्द, समभिरूढ अने एवंभूतनय छे.
वळी तेना पण उत्तरोत्तर जेटला वचनना प्रकार छे तेटला भेद छे. तेने
प्रमाणसप्तभंगी तथा नयसप्तभंगीना विधान द्वारा साधी शकाय छे. एनुं
कथन प्रथम लोकभावनामां कर्युं छे, तथा तेनुं विशेष कथन श्री
तत्त्वार्थसूत्रनी टीकाथी जाणवुं. ए प्रमाणे प्रमाण
नय द्वारा जीवादि
पदार्थोने जाणीने जे श्रद्धान करे ते शुद्ध सम्यग्द्रष्टि थाय छे.
अहीं आ विशेष जाणवुं केनय, वस्तुना एक एक धर्मनो ग्राहक
छे अने ते पोतपोताना विषयरूप धर्मने ग्रहण करवामां समान छे, तोपण
पुरुष पोताना प्रयोजनवश तेने मुख्य
गौण करीने कहे छे. जेम जीव
नामनी वस्तुमां अनेक धर्म छे तोपण चेतनपणुं आदि प्राणधारणपणुं
अजीवोथी असाधारण जोईए. अजीवोथी (जीवने) जुदो बताववा माटे
प्रयोजनवश मुख्य करी चेतनवस्तुनुं ‘जीव’ नाम राख्युं. ए ज प्रमाणे सर्व
धर्मोंने प्रयोजनवश मुख्य
गौण करवानी विधि जाणवी.
अहीं ए ज आशयथी अध्यात्म कथनीमां मुख्यने तो निश्चय कह्यो
छे तथा गौणने व्यवहार कह्यो छे. त्यां अभेदधर्मने तो प्रधानपणे निश्चयनो
विषय कह्यो अने भेद-नयने गौण करी व्यवहार कह्यो. वळी द्रव्य तो
अभेद छे तेथी निश्चयनो आश्रय द्रव्य छे, तथा पर्याय भेदरूप छे तेथी
व्यवहारनो आश्रय पर्याय छे. त्यां प्रयोजन आ छे के
वस्तुने भेदरूप तो
सर्व लोक जाणे छेअने जे जाणे छे ते ज प्रसिद्ध छे, तेनाथी तो लोक
पर्यायबुद्धि छे. जीवने नरनारकादिक पर्याय छे, रागद्वेषक्रोधमान
मायालोभादि पर्याय छे तथा ज्ञानना भेदरूप मतिज्ञानादि पण पर्याय
छे, ए सर्व पर्यायोने ज लोक जीव माने छे, तेथी ए पर्यायोमां अभेदरूप
अनादि अनंत एकभावरूप चेतनाधर्मने ग्रहण करी तेने निश्चयनयनो
विषय कही जीवद्रव्यनुं ज्ञान कराव्युं, अने पर्यायाश्रित भेदनयने गौण कर्यो.
अभेदद्रष्टिमां ते (भेदनय) देखातो नथी तेथी अभेदनयनुं द्रढश्रद्धान
कराववा माटे कह्युं के
पर्यायनय छे ते व्यवहार छे
अभूतार्थ छेअसत्यार्थ