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परंतु त्यां एम नथी के आ भेद छे तेने असत्यार्थ कह्यो छे
पण सर्वथा एकान्तश्रद्धानथी मिथ्याद्रष्टि ज रहे छे. अध्यात्मशास्त्रमां ज्यां
निश्चय-व्यवहारनय कह्या छे त्यां पण ए बंनेना परस्पर विधि
एकने सर्वथा असत्यार्थ मानवामां आवे तो त्यां मिथ्याश्रद्धान थाय छे माटे
त्यां पण ‘कथंचित्’ समजवुं.
छे एम कह्युं छे. ज्यां प्रयोजन के निमित्त होय त्यां उपचार प्रवर्ते छे.
जेम ‘घीनो घडो’ कहीए त्यां माटीना घडाना आश्रये घी भर्युं होय त्यां
व्यवहारीजनोने आधार
घडो मंगावे तो तेने लावे. तेथी उपचारमां पण प्रयोजन संभवे छे. ए
ज प्रमाणे अभेदनयने मुख्य करवामां आवे त्यां अभेदद्रष्टिमां भेद देखातो
नथी त्यारे तेमां ज भेद कहे ते असत्यार्थ छे एटले त्यां पण उपचार
सिद्ध थाय छे. आ मुख्य गौणना भेदने (रहस्यने) सम्यग्द्रष्टि जाणे छे.
करी असत्यार्थ माने छे अने कां तो अन्य धर्मोनो सर्वथा अभाव ज माने
छे
आवे छे. ए प्रकृतिनो अभाव थतां तत्त्वार्थोनुं यथार्थ श्रद्धान थाय छे ते आ
अनेकान्तवस्तुमां प्रमाण नयथी सातभंग द्वारा साधवामां आवे ते सम्यक्त्वनुं
कार्य छे. तेथी तेने पण सम्यक्त्व ज कहेवामां आवे छे एम जाणवुं.