Swami Kartikeyanupreksha-Gujarati (Devanagari transliteration).

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[ स्वामिकार्त्तिकेयानुप्रेक्षा
छे. भेदबुद्धिना एकान्तनुं निराकरण करवा माटे आम कहेवामां आवे छे.
परंतु त्यां एम नथी के आ भेद छे तेने असत्यार्थ कह्यो छे
वस्तुनुं स्वरूप
नथी. जो ए प्रमाणे कोई सर्वथारूप माने तो ते अनेकान्तमां समज्यो नथी
पण सर्वथा एकान्तश्रद्धानथी मिथ्याद्रष्टि ज रहे छे. अध्यात्मशास्त्रमां ज्यां
निश्चय-व्यवहारनय कह्या छे त्यां पण ए बंनेना परस्पर विधि
निषेधपूर्वक
सप्तभंगथी वस्तुने साधवी. जो एकने सर्वथा सत्यार्थ मानवामां आवे अने
एकने सर्वथा असत्यार्थ मानवामां आवे तो त्यां मिथ्याश्रद्धान थाय छे माटे
त्यां पण ‘कथंचित्’ समजवुं.
वळी अन्य वस्तुने अन्यमां आरोपण करी प्रयोजन साधवामां आवे
छे तेने उपचारनय कहेवामां आवे छे अने ते पण व्यवहारनयमां गर्भित
छे एम कह्युं छे. ज्यां प्रयोजन के निमित्त होय त्यां उपचार प्रवर्ते छे.
जेम ‘घीनो घडो’ कहीए त्यां माटीना घडाना आश्रये घी भर्युं होय त्यां
व्यवहारीजनोने आधार
आधेयभाव देखाय छे तेने प्रधान करीने कहेवामां
आवे छे के ‘घीनो घडो छे’. लोक पण एम ज कहेवाथी समजे अने घीनो
घडो मंगावे तो तेने लावे. तेथी उपचारमां पण प्रयोजन संभवे छे. ए
ज प्रमाणे अभेदनयने मुख्य करवामां आवे त्यां अभेदद्रष्टिमां भेद देखातो
नथी त्यारे तेमां ज भेद कहे ते असत्यार्थ छे एटले त्यां पण उपचार
सिद्ध थाय छे. आ मुख्य गौणना भेदने (रहस्यने) सम्यग्द्रष्टि जाणे छे.
मिथ्याद्रष्टि अनेकान्तवस्तुने जाणतो नथी पण सर्वथा एक धर्म उपर
द्रष्टि पडतां तेने ज सर्वथारूप वस्तु मानी अन्य धर्मोने कां तो सर्वथा गौण
करी असत्यार्थ माने छे अने कां तो अन्य धर्मोनो सर्वथा अभाव ज माने
छे
मिथ्याश्रद्धानने द्रढ करे छे. अने ते मिथ्यात्व नामनी कर्म-प्रकृतिना उदयथी
यथार्थ श्रद्धा थती नथी तेथी ए प्रकृतिना कार्यने पण मिथ्यात्व ज कहेवामां
आवे छे. ए प्रकृतिनो अभाव थतां तत्त्वार्थोनुं यथार्थ श्रद्धान थाय छे ते आ
अनेकान्तवस्तुमां प्रमाण नयथी सातभंग द्वारा साधवामां आवे ते सम्यक्त्वनुं
कार्य छे. तेथी तेने पण सम्यक्त्व ज कहेवामां आवे छे एम जाणवुं.
जैनदर्शननी कथनी अनेक प्रकारथी छे तेने अनेकान्तरूप समजवी