Swami Kartikeyanupreksha-Gujarati (Devanagari transliteration).

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[ १९ ]

गाथा

विषय
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गाथा
विषय
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९०

पुण्य-पापना भेदथी
आस्रवना बे प्रकार ... ५०
१४२
विकलत्रय जीवोनां स्थान८६
१४३
अढी-द्वीप बहारना
तिर्यंचोनी स्थिति ...... ८७

९१९१

मंद तीव्र कषायनां
द्रष्टांत .................... ५१
१४४
जलचर जीवोनां स्थान८७

९३९४

आस्रवभावना कोने निष्फळ
सफळ .................... ५२
१४५१४६ भवनत्रिक, कल्पवासी ने
नारकीओनां स्थान८७८८

९५१०१

८. संवरानुप्रेक्षा
५३५५
१४७१५१ तेज, वात, पृथ्वी आदि

९५९६

संवरना नाम अने हेतु५३
जीवोनी संख्या ८८९०
-

९७९९

गुप्ति, समिति, धर्म,
अनुप्रेक्षा, चारित्रनुं
स्वरूप ................... ५४
१५२
सान्तर
निरन्तरनुं कथन ९०
१५३१६० संख्या-अपेक्षाए
जीवोनां अल्पबहुत्वनुं
कथन .............. ९१
९३

१००-१०१ संवरशून्यने संसारभ्रमण

अने आत्मनिष्ठने ..........
संवरस्फुरण.............. ५५
१६११६५ सर्वजीवोनां उत्कृष्ट
जघन्य आयुष्य ९१९५

१०२११४

९.निर्जरानुप्रेक्षा
५६६२
१६६१७५ जीवोनां शरीरोनी उत्कृष्ट

१०२१०५निर्जरानुं कारण, स्वरूप,

जघन्य अवगाहना ९५९९
भेद अने वृद्धि.... ५६-५८
१७६
जीवनुं लोकप्रमाणपणुं अने

१०६१०८ निर्जरानी वृद्धिनां स्थान ५८

देहप्रमाणपणुं .......... ९९

१०९११४अधिक निर्जरा कोने थाय

१७७
जीव सर्वथा सर्वगत
नथी ................... १००
छे? ................ ५९६२
१७८१८० गुण-गुणी प्रदेशथी

११५२८३ १०. लोकानुप्रेक्षा

६३१५२
अभिन्न छे, भिन्न .......
मानवामां दोष१००
१०१

११५१२० लोकाकाशनुं स्वरूप तथा

विस्तार ........... ७०७३
१८११८४ जीव पंचभूतोनो विकार
होवानो निषेध तथा तेनी
यथातथ सिद्धि१०१
१०३

१२१

‘लोक’ शब्दनी निरुक्ति ७३

१२२१३३ जीवोना भेद .... ७३

८१
१८५१८७ देह अने जीवमां

१३४१३८ पर्याप्तिनुं वर्णन . ८१

८४
एकत्व भासवानुं
कारण ........ १०३
१०४

१३९१४१ प्राणोनुं स्वरूप, संख्या

अने स्वामी...... ८५८६