Swami Kartikeyanupreksha-Gujarati (Devanagari transliteration).

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९०
पुण्य-पापना भेदथी
आस्रवना बे प्रकार ... ५०
९१९१
मंद तीव्र कषायनां
द्रष्टांत .................... ५१
९३९४
आस्रवभावना कोने निष्फळ
सफळ .................... ५२
९५१०१
८. संवरानुप्रेक्षा
५३५५
९५९६
संवरना नाम अने हेतु५३
९७९९
गुप्ति, समिति, धर्म,
अनुप्रेक्षा, चारित्रनुं
स्वरूप ................... ५४
१००-१०१ संवरशून्यने संसारभ्रमण
अने आत्मनिष्ठने ..........
संवरस्फुरण.............. ५५
१०२११४
९.निर्जरानुप्रेक्षा
५६६२
१०२१०५निर्जरानुं कारण, स्वरूप,
भेद अने वृद्धि.... ५६-५८
१०६१०८ निर्जरानी वृद्धिनां स्थान ५८
१०९११४अधिक निर्जरा कोने थाय
छे? ................ ५९६२
११५२८३ १०. लोकानुप्रेक्षा
६३१५२
११५१२० लोकाकाशनुं स्वरूप तथा
विस्तार ........... ७०७३
१२१
‘लोक’ शब्दनी निरुक्ति ७३
१२२१३३ जीवोना भेद .... ७३
८१
१३४१३८ पर्याप्तिनुं वर्णन . ८१
८४
१३९१४१ प्राणोनुं स्वरूप, संख्या
अने स्वामी...... ८५८६
१४२
विकलत्रय जीवोनां स्थान८६
१४३
अढी-द्वीप बहारना
तिर्यंचोनी स्थिति ...... ८७
१४४
जलचर जीवोनां स्थान८७
१४५१४६ भवनत्रिक, कल्पवासी ने
नारकीओनां स्थान८७८८
१४७१५१ तेज, वात, पृथ्वी आदि
जीवोनी संख्या ८८९०
१५२
सान्तर
-
निरन्तरनुं कथन ९०
१५३१६० संख्या-अपेक्षाए
जीवोनां अल्पबहुत्वनुं
कथन .............. ९१
९३
१६११६५ सर्वजीवोनां उत्कृष्ट
जघन्य आयुष्य ९१९५
१६६१७५ जीवोनां शरीरोनी उत्कृष्ट
जघन्य अवगाहना ९५९९
१७६
जीवनुं लोकप्रमाणपणुं अने
देहप्रमाणपणुं .......... ९९
१७७
जीव सर्वथा सर्वगत
नथी ................... १००
१७८१८० गुण-गुणी प्रदेशथी
अभिन्न छे, भिन्न .......
मानवामां दोष१००
१०१
१८११८४ जीव पंचभूतोनो विकार
होवानो निषेध तथा तेनी
यथातथ सिद्धि१०१
१०३
१८५१८७ देह अने जीवमां
एकत्व भासवानुं
कारण ........ १०३
१०४
गाथा
विषय
पृष्ठ
गाथा
विषय
पृष्ठ
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