Swami Kartikeyanupreksha-Gujarati (Devanagari transliteration).

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[ २० ]

गाथा

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गाथा
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२२०२२१ व्यवहारकाळ तथा तेनी

१८८१९१ जीव स्वयं कर्ता, भोक्ता,

संख्या ........ ११९१२०
पुण्य-पापने तीर्थ
छे. ........... १०५
१०६
२२२-२२३ कारण-कार्यनुं निरूपण१२१
२२४
२२५ अनेकांतात्मक वस्तुने ज ....

१९२१९९ जीवना

बहिरात्मा,
-
अर्थक्रियाकारीपणुं १२१
१२२
अंतरात्मा ने परमात्मा
२२६२२८ सर्वथा एकान्तमां
त्रण भेद तथा तेमनुं
स्वरूप ....... १०७
११०
अर्थक्रियाकारित्वनो
अभाव ...... १२२
१२३

२००२०१ जीवने अनादिथी

२२९२३२ पूर्व-उत्तर भावमां
सर्वथा शुद्ध मानवानो
निषेध ................. १११
कारणकार्यपणुं १२३१२५
२३३-२३५ सर्वथा अन्य, एक,

२०२२०३ अशुद्धता

शुद्धतानुं
अणुमात्र मानवामां
दोष .......... १२५
१२६
कारण अने बंधनुं
स्वरूप ................ ११२
२३६
सर्व द्रव्योमां
भिन्नाभिन्नपणुं..... १२७

२०४२०५ जीव ज उत्तम तत्त्व छे

शाथी?....... ११२११३
२३७२३९ द्रव्यनुं गुण-पर्याय ने

२०६२०७ पुद्गलद्रव्यनुं

उत्पाद-व्यय-ध्रौव्यथी .......
युक्तपणुं ..... १२७
१२८
स्वरूप ....... ११३११४

२०८२१० पुद्गलने जीवनुं ने

२४०-२४२ द्रव्य, पर्याय ने गुणनुं
जीवने अन्य जीवनुं
उपकारीपणुं . ११४
११५
स्वरूप ....... १२९१३०
२४३२४४ द्रव्यमां अविद्यमान

२११

पुद्गलनी कोई अपूर्व
शक्ति ................. ११५
पर्यायनी ज उत्पत्ति
काळादि
लब्धिथी ..... १३०
१३१

२१२२१६ धर्म-अधर्म-आकाश-काळनुं

स्वरूप ....... ११६११८
२४५
द्रव्य अने पर्यायने कथंचित्
भेदाभेद .............. १३१

२१७२१८ परिणामनुं कारण द्रव्य

छे, अन्य तो निमित्तमात्र
छे ............ ११८
११९
२४६
द्रव्य अने पर्यायमां सर्वथा
भेद मानवामां दोष १३२

२१९

बधां द्रव्यो काळादि
लब्धि सहित छे. ... ११९
२४७२४९ विज्ञान-अद्वैत मतमां
दोषनुं निरूपण१३२१३३