Swami Kartikeyanupreksha-Gujarati (Devanagari transliteration).

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१८८१९१ जीव स्वयं कर्ता, भोक्ता,
पुण्य-पापने तीर्थ
छे. ........... १०५
१०६
१९२१९९ जीवना
बहिरात्मा,
अंतरात्मा ने परमात्मा
त्रण भेद तथा तेमनुं
स्वरूप ....... १०७
११०
२००२०१ जीवने अनादिथी
सर्वथा शुद्ध मानवानो
निषेध ................. १११
२०२२०३ अशुद्धता
शुद्धतानुं
कारण अने बंधनुं
स्वरूप ................ ११२
२०४२०५ जीव ज उत्तम तत्त्व छे
शाथी?....... ११२११३
२०६२०७ पुद्गलद्रव्यनुं
स्वरूप ....... ११३११४
२०८२१० पुद्गलने जीवनुं ने
जीवने अन्य जीवनुं
उपकारीपणुं . ११४
११५
२११
पुद्गलनी कोई अपूर्व
शक्ति ................. ११५
२१२२१६ धर्म-अधर्म-आकाश-काळनुं
स्वरूप ....... ११६११८
२१७२१८ परिणामनुं कारण द्रव्य
छे, अन्य तो निमित्तमात्र
छे ............ ११८
११९
२१९
बधां द्रव्यो काळादि
लब्धि सहित छे. ... ११९
२२०२२१ व्यवहारकाळ तथा तेनी
संख्या ........ ११९१२०
२२२-२२३ कारण-कार्यनुं निरूपण१२१
२२४
२२५ अनेकांतात्मक वस्तुने ज ....
अर्थक्रियाकारीपणुं १२१
-
१२२
२२६२२८ सर्वथा एकान्तमां
अर्थक्रियाकारित्वनो
अभाव ...... १२२
१२३
२२९२३२ पूर्व-उत्तर भावमां
कारणकार्यपणुं १२३१२५
२३३-२३५ सर्वथा अन्य, एक,
अणुमात्र मानवामां
दोष .......... १२५
१२६
२३६
सर्व द्रव्योमां
भिन्नाभिन्नपणुं..... १२७
२३७२३९ द्रव्यनुं गुण-पर्याय ने
उत्पाद-व्यय-ध्रौव्यथी .......
युक्तपणुं ..... १२७
१२८
२४०-२४२ द्रव्य, पर्याय ने गुणनुं
स्वरूप ....... १२९१३०
२४३२४४ द्रव्यमां अविद्यमान
पर्यायनी ज उत्पत्ति
काळादि
लब्धिथी ..... १३०
१३१
२४५
द्रव्य अने पर्यायने कथंचित्
भेदाभेद .............. १३१
२४६
द्रव्य अने पर्यायमां सर्वथा
भेद मानवामां दोष १३२
२४७२४९ विज्ञान-अद्वैत मतमां
दोषनुं निरूपण१३२१३३
गाथा
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