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ॐ
श्रीपरमात्मने नमः।
स्वामिकार्त्तिकेयानुप्रेक्षा
गुजराती भाषानुवाद
मंगलाचरण
(दोहा)
प्रथम ॠषभ जिन धर्मकर, सन्मति चरम जिनेश;
विघनहरण मंगलकरण, भवतम-दुरित-दिनेश. १.
वाणी जिनमुखथी खरी, पडी गणाधिप-कान;
अक्षर-पदमय विस्तरी, करहि सकल कल्याण. २.
गुरु गणधर गुणधर सकल, प्रचुर परंपर और;
व्रततपधर तनुनगनधर, वंदो वृष शिरमौर. ३.
स्वामी कार्त्तिकेय मुनि, बारह भावना भाय;
कर्युं कथन विस्तारथी, प्राकृत-छंद बनाय. ४.
संस्कृत टीका तेहनी, करी सुघर शुभचंद्र;
सुगम-देशभाषामयी, करुं नाम जयचंद्र. ५.
भणो भणावो भव्यजन, यथाज्ञान मनधार;
करो निर्जरा कर्मनी, वार वार सुविचार. ६.
ए प्रमाणे देव-शास्त्र-गुरुने नमस्काररूप मंगलाचरणपूर्वक प्रतिज्ञा