
ते एषणासमिति छे; अति यत्नाचारपूर्वक भूमिने जोईने धर्मनां
उपकरणो उठाववां मूकवां ते आदाननिक्षेपणसमिति छे त्रस
मरो वा न मरो पण बंध अवश्य थाय छे.
भिक्षाशुद्धि, ६. प्रतिष्ठापनाशुद्धि, ७. शयनासनशुद्धि तथा ८. वाक्यशुद्धि.
तेमां भावशुद्धि तो कर्मना क्षयोपशमजनित छे, ए विना आचार प्रगट
थतो नथी; जेम शुद्ध उज्ज्वळ भींत उपर चित्र शोभायमान देखाय छे
तेम. वळी दिगम्बररूप, सर्वविकारो रहित, यत्नपूर्वक प्रवृत्ति छे जेमां
एवी, शान्त मुद्राने जोई अन्यने भय न ऊपजे अने पोते पण निर्भय
रहे एवी कायशुद्धि छे. ज्यां अरहंतादिमां भक्ति तथा गुरुजनने अनुकूळ
रहेवुं एवी विनयशुद्धि छे. जीवोनां सर्व स्थान मुनि जाणे छे तेथी पोताना
ज्ञान द्वारा सूर्यना उद्योतथी नेत्रइन्द्रिय वडे मार्गमां अति यत्नपूर्वक जोईने
चालवुं ते इर्यापथशुद्धि छे. भोजन माटे जतां पहेलां पोताना मळ-मूत्रनी
बाधाने परखे, पोताना अंगनुं बराबर प्रतिलेखन करे. आचारसूत्रमां
कह्या प्रमाणे देश
होय त्यां जाय नहि, वेश्याना घरे जाय नहि, ज्यां पापकर्म
यज्ञशाळामां, यज्ञपूजनशाळामां तथा विवाहादि मंगळ ज्यां होय तेना घरे
आहार अर्थे जाय नहि, धनवानने त्यां जवुं के निर्धनने त्यां जवुं एम