Swami Kartikeyanupreksha-Gujarati (Devanagari transliteration).

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रहित, पोताना करपात्रमां, ऊभा ऊभा, अति यत्नपूर्वक शुद्धआहार करे
ते एषणासमिति छे; अति यत्नाचारपूर्वक भूमिने जोईने धर्मनां
उपकरणो उठाववां मूकवां ते आदाननिक्षेपणसमिति छे त्रस
स्थावरजीवोने जोईटाळी यत्नपूर्वक शरीरनां मळमूत्रादिने क्षेपवां
(नाखवांदाटवां) ते प्रतिष्ठापना समिति छे. ए प्रमाणे पांच समिति
पालन करे तेनाथी संयम पळाय छे. (सिद्धान्तमां) एम कह्युं छे के
जो यत्नाचारपूर्वक प्रवर्ते छे तो तेनाथी बाह्य जीवोने बाधा थाय
तोपण तेने बंध नथी, तथा यात्नाचाररहित प्रवर्ते छे तेने बाह्य जीव
मरो वा न मरो पण बंध अवश्य थाय छे.
वळी अपहृतसंयमना पालन अर्थे आठ विशुद्धिओनो उपदेश छे.
१. भावशुद्धि, २. कायशुद्धि, ३. विनयशुद्धि, ४. इर्यापथशुद्धि, ५.
भिक्षाशुद्धि, ६. प्रतिष्ठापनाशुद्धि, ७. शयनासनशुद्धि तथा ८. वाक्यशुद्धि.
तेमां भावशुद्धि तो कर्मना क्षयोपशमजनित छे, ए विना आचार प्रगट
थतो नथी; जेम शुद्ध उज्ज्वळ भींत उपर चित्र शोभायमान देखाय छे
तेम. वळी दिगम्बररूप, सर्वविकारो रहित, यत्नपूर्वक प्रवृत्ति छे जेमां
एवी, शान्त मुद्राने जोई अन्यने भय न ऊपजे अने पोते पण निर्भय
रहे एवी कायशुद्धि छे. ज्यां अरहंतादिमां भक्ति तथा गुरुजनने अनुकूळ
रहेवुं एवी विनयशुद्धि छे. जीवोनां सर्व स्थान मुनि जाणे छे तेथी पोताना
ज्ञान द्वारा सूर्यना उद्योतथी नेत्रइन्द्रिय वडे मार्गमां अति यत्नपूर्वक जोईने
चालवुं ते इर्यापथशुद्धि छे. भोजन माटे जतां पहेलां पोताना मळ-मूत्रनी
बाधाने परखे, पोताना अंगनुं बराबर प्रतिलेखन करे. आचारसूत्रमां
कह्या प्रमाणे देश
काळस्वभावनो विचार करे, आटली जग्याए आहार
माटे प्रवेश करे नहिज्यां गीत नृत्य वाजिंत्र वडे जेनी आजीविका होय
तेना घेर जाय नहि, प्रसूति थई होय त्यां जाय नहि, ज्यां मृत्यु थयुं
होय त्यां जाय नहि, वेश्याना घरे जाय नहि, ज्यां पापकर्म
हिंसाकर्म थतुं
होय त्यां जाय नहि, दीनना घरे, अनाथना घरे, दानशाळामां,
यज्ञशाळामां, यज्ञपूजनशाळामां तथा विवाहादि मंगळ ज्यां होय तेना घरे
आहार अर्थे जाय नहि, धनवानने त्यां जवुं के निर्धनने त्यां जवुं एम
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[ स्वामिकार्त्तिकेयानुप्रेक्षा