
ते मुनिने उत्तम संयमधर्म होय छे.
करवामां गमन
निमित्ते कोईनुं अहित न थाओ’. एवा यत्नरूप प्रवर्ते छे, जीवदयामां
ज तत्पर रहे छे. अन्य ग्रंथोमां संयमनुं विशेष वर्णन कर्युं छे ते अहीं
टीकाकार संक्षेपमां कहे छेः
कायोत्सर्ग
उत्कृष्ट, मध्यम अने जघन्य. त्यां चालतां
मोरपींछीथी जीवने सरकावे ते मध्यम छे तथा अन्य तृणादिकथी सरकावे
ते जघन्य छे. अहीं अपहृतसंयमीने पांच समितिनो उपदेश छे. त्यां
आहार-विहार अर्थे गमन करे तो प्रासुकमार्ग जोई जुडाप्रमाण (चार
हाथ) भूमिने जोई मंद मंद अति यत्नाचारपूर्वक गमन करे ते
इर्यासमिति छे; धर्मोपदेशादि अर्थे वचन कहे तो हितरूप, मर्यादापूर्वक
अने संदेहरहित स्पष्ट अक्षररूप वचन कहे, अति प्रलापादि वचनना
दोषरहित बोले ते भाषासमिति छे; कायानी स्थिति अर्थे आहार करे,
ते पण मन-वचन-काय-कृत-कारित-अनुमोदना दोष जेमां न लागे एवो,
परनो आपेलो, छेंतालीस दोष, बत्रीस अंतराय अने चौद मळदोष