छुं – अन्य मारुं कांई पण नथी, हुं अकिंचन छुं’ — एवुं निर्ममत्व थाय
तेने (उत्तम) आकिंचन्य धर्म होय छे.
हवे उत्तम ब्रह्मचर्यधर्म कहे छेः —
जो परिहरेदि संगं महिलाणं णेव पस्सदे रूवं ।
कामकहादिणियत्तो णवहा बंभं हवे तस्स ।।४०३।।
यः परिहरति संगं महिलानां नैव पश्यति रूपम् ।
कामकथादिनिवृत्तः नवधा ब्रह्म भवेत् तस्य ।।४०३।।
अर्थः — जे मुनि स्त्रीओनी संगति न करे, तेमना रूपने न
नीरखे, कामनी कथा तथा ‘आदि’ शब्दथी तेना स्मरणादिथी रहित होय,
ए प्रमाणे मन-वचन-काय, कृत-कारित-अनुमोदना एम नव प्रकारथी
तेनो त्याग करे, ते मुनिने उत्तम ब्रह्मचर्यधर्म होय छे.
भावार्थः — अहीं एम पण जाणवुं के – ‘ब्रह्म’ नाम आत्मा छे,
तेमां लीन थाय ते ब्रह्मचर्य छे. परद्रव्यमां आत्मा लीन थाय तेमां
स्त्रीमां लीन थवुं प्रधान छे, कारण के काम मनमां उत्पन्न थाय छे
एटले अन्य कषायोथी पण ए प्रधान छे, अने ए कामनुं आलंबन
स्त्री छे एटले तेनो संसर्ग छोडी मुनि पोताना स्वरूपमां लीन थाय छे.
तेनी संगति करवी, रूप नीरखवुं, तेनी कथा करवी, स्मरण करवुं – ए
सर्व छोडे तेने ब्रह्मचर्य होय छे. अहीं (संस्कृत) टीकामां शीलना अढार
हजार भेद आ प्रमाणे लख्या छेः —
अचेतन स्त्री – काष्ठ, पाषाण अने लेपकृत छे. तेना मन-वचन-काय
तथा कृत-कारित-अनुमोदना ए छए गुणतां अढार भेद थया, तेने पांच
इन्द्रियोथी गुणतां नेवुं भेद थया, तेने द्रव्य अने भावथी गुणतां एकसो
एंशी भेद थया, तेने क्रोध-मान-माया-लोभ ए चारेथी गुणतां सातसो
वीस भेद थया. (ए प्रमाणे अचेतन स्त्री – नैमित्तिक कुशील सातसो वीस
भेद थयुं.) तथाः —
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