Swami Kartikeyanupreksha-Gujarati (Devanagari transliteration). Gatha: 404.

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चेतन स्त्रीदेवांगना, मनुष्यणी अने तिर्यंचणी. ए त्रणने कृत
-कारित-अनुमोदनाथी गुणतां नव भेद थया, तेने मन-वचन-काया ए
त्रणथी गुणतां सत्तावीश भेद थया, तेने पांच इन्द्रियोथी गुणतां
एकसो पांत्रीस भेद थया, तेने द्रव्य अने भावथी गुणतां बसो
सीत्तेर भेद थया, तेने आहार-भय-मैथुन-परिग्रह ए चार संज्ञाथी
गुणतां एक हजार एंशी भेद थया, तेने अनंतानुबंधी,
अप्रत्याख्यानावरणी अने संज्वलनरूप क्रोध-मान-माया-लोभरूप सोळ
कषायोथी गुणतां सत्तर हजार बसो एंशी भेद थया, तेमां उपरना
अचेतनस्त्रीनैमित्तिक सातसो वीस मेळवतां कुशीलना १८०००
अढार
हजार भेद थाय छे. वळी ए भेदोने अन्य प्रकारथी पण कह्या छे
ते अन्य ग्रंथोमांथी जाणवा.
ए बधा आत्माना परिणामविकारना
भेद छे. ते बधाने छोडी ज्यारे आत्मा पोताना स्वरूपमां रमण करे
त्यारे उत्तम ब्रह्मचर्यधर्म होय छे.
हवे शीलवाननुं माहात्म्य कहे छेः
जो णवि जादि वियारं तरुणियणकडक्खबाणविद्धो वि
सो चेव सूरसूरो रणसूरो णो हवे सूरो ।।४०४।।
अशुभ मन-वचन-कायने शुभ मन-वचन-कायथी हणवा ए रीते
शीलना नव भेद थया.
ए नवने अहार, भय, मैथुन ने परिग्रहरूप चार संज्ञाओथी गुणतां ३६
भेद थया.
ए छत्रीसने पांच इन्द्रियोना जयथी गुणतां १८० भेद थया.
ए १८०ने पृथ्वी, अप्, तेज, वायु, वनस्पति, बे इन्द्रिय, त्रण इन्द्रिय,
चार इन्द्रिय, संज्ञी पंचेन्द्रिय अने असंज्ञी पंचेन्द्रिय ए दश भेदथी गुणतां
१८०० भेद थया.
तेने उत्तमक्षमादि दशधर्मे गुणतां १८००० भेद थया.
षट्प्राभृतादिसंग्रह पृष्ठ२६७
धर्मानुप्रेक्षा ]
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