Swami Kartikeyanupreksha-Gujarati (Devanagari transliteration). Gatha: 69-70.

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[ स्वामिकार्त्तिकेयानुप्रेक्षा

छे तेटली वार तो त्यां ज ए ज अवगाहना पामे छे, वच्चे अन्य जग्याए अन्य अवगाहनाथी (जीव) ऊपजे तेनी अहीं गणतरी नथी. त्यार पछी एक एक प्रदेश क्रमपूर्वक वधती अवगाहना पामे ते अहीं गणतरीमां छे. ए प्रमाणे (क्रमपूर्वक वधतां वधतां) महामच्छनी उत्कृष्ट अवगाहना सुधी पूर्ण करे अने ए रीते अनुक्रमे लोकाकाशना सर्व प्रदेशोने स्पर्शे त्यारे एक क्षेत्रपरावर्तन थाय.

हवे काळपरावर्तन कहे छेः
उवसप्पिणिअवसप्पिणिपढमसमयादिचरमसमयंतं
जीवो कमेण जम्मदि मरदि य सव्वेसु कालेसु ।।६९।।
उत्सर्पिणीअवसर्पिणीप्रथमसमयादिचरमसमयान्तम्
जीवः क्रमेण जायते म्रियते च सर्वेषु कालेषु ।।६९।।

अर्थःउत्सर्पिणी अने अवसर्पिणी काळना प्रथम समयथी मांडीने अंतना समय सुधी आ जीव अनुक्रमपूर्वक सर्वकाळमां ऊपजे तथा मरे छे (ते काळपरावर्तन छे).

भावार्थःकोई जीव, दस कोडाकोडी सागरनो जे उत्सर्पिणीकाळ तेना प्रथम समयमां जन्म पामे, पछी बीजी उत्सर्पिणीना बीजा समयमां जन्मे, ए ज प्रमाणे त्रीजी उत्सर्पिणीना त्रीजा समयमां जन्मे, ए प्रमाणे अनुक्रमपूर्वक अंतना समय सुधी जन्मे, वच्चे अन्य समयोमां अनुक्रमरहित जन्मे तेनी अहीं गणतरी नथी. ए ज प्रमाणे अवसर्पिणीकाळना पण दस कोडाकोडी सागरना समयो (क्रमवार) पूर्ण करे तथा ए ज प्रमाणे मरण करे तेने एक काळपरावर्तन कहे छे. तेमां पण अनंत काळ थाय छे.

हवे भवपरावर्तन कहे छेः

णेरइयादिगदीणं अवरट्ठिदिदो वरट्ठिटी जाव
सव्वट्ठिदिसु वि जम्मदि जीवो गेवेज्जपज्जंतं ।।७०।।