Swami Kartikeyanupreksha-Gujarati (Devanagari transliteration). Gatha: 68.

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संसारानुप्रेक्षा ]

[ ३७

छे तेमांथी एटली ज (कर्मवर्गणाओ) समये समये खरी जाय छे. वळी ए ज प्रमाणे औदारिकादि शरीरोना समयप्रबद्धो शरीरग्रहणना समयथी मांडीने आयु स्थिति सुधी ग्रहण करे छे वा छोडे छे. ए प्रमाणे अनादिकाळथी मांडी अनंत वार (कर्म-नोकर्म पुद्गलोनुं) ग्रहण करवुं वा छोडवुं थया ज करे छे.

हवे त्यां एक परावर्तनना प्रारंभमां प्रथम समयना समय- प्रबद्धमां जेटला पुद्गलपरमाणुने जेवा स्निग्ध-रूक्ष-वर्ण-गंध-रस-स्पर्श तीव्र-मंद-मध्यम भावथी ग्रह्या होय तेटला ज तेवी रीते कोई समये फरी ग्रहणमां आवे त्यारे एक कर्मनोकर्मपरावर्तन थाय छे, पण वच्चे अनंत वार अन्य प्रकारना परमाणु ग्रहण थाय तेने अहीं न गणवा; एवी रीते जेवा ने तेवा ज (कर्म-नोकर्मपरमाणुओने) फरीथी ग्रहण थवाने अनंतकाळ जाय छे. तेने एक द्रव्यपरावर्तन कहीए छीए. ए प्रमाणे आ जीवे आ लोकमां अनंता परावर्तन कर्यां.

हवे क्षेत्रपरावर्तन कहे छेः

सो को वि णत्थि देसो लोयायासस्स णिरवसेसस्स
जत्थ ण सव्वो जीवो जादो मरिदो य बहुवारं ।।६८।।
सः कः अपि नास्ति देशः लोकाकाशस्य निरवशेषस्य
यत्र न सर्वः जीवः जातः मृतः च बहुवारम् ।।६८।।

अर्थःआ समग्र लोकाकाशनो एवो कोई पण प्रदेश नथी के ज्यां आ सर्व संसारी जीवो अनेक वार ऊपज्यामर्या न होय.

भावार्थःसर्व लोकाकाशना प्रदेशोमां आ जीव अनंतवार ऊपज्यो-मर्यो छे. एवो एक पण प्रदेश बाकी रह्यो नथी के ज्यां (आ जीव) न ऊपज्यो-मर्यो होय. अहीं आ प्रमाणे समजवुं के लोकाकाशना प्रदेशो असंख्यात छे. तेना मध्यना आठ प्रदेशने वचमां लईने सूक्ष्मनिगोदलब्धअपर्याप्तक जघन्य अवगाहना धारण करी जीव ऊपजे छे. हवे तेनी अवगाहना पण असंख्यात प्रदेशी छे. ते जेटला प्रदेश