४० ]
स्थितिबंधना तथा अनुभागबंधना कारणरूप अनेक प्रकारना कषायोरूपे परिणमे छे.
भावार्थः — कर्मोना एक स्थितिबंधना कारणरूप कषायोनां स्थानक असंख्यातलोकप्रमाण छे. तेमां एक स्थितिबंधस्थानमां अनुभागबंधना कारणरूप कषायोनां स्थान असंख्यातलोकप्रमाण छे. वळी योगस्थान छे ते जगतश्रेणीना असंख्यातमा भागे छे. तेने आ जीव परिवर्तन करे छे. ते केवी रीते? कोई संज्ञी मिथ्याद्रष्टि पर्याप्त जीव पोताने योग्य सर्व जघन्य ज्ञानावरण कर्मप्रकृतिनी स्थिति अंतःकोडाकोडी सागर प्रमाण बांधे, तेनां कषायस्थान असंख्यात लोकमात्र छे. तेमां सर्व जघन्यस्थान एकरूप परिणमे. तेमां ते एक स्थानमां अनुभागबंधना कारणरूप स्थान एवा असंख्यातलोकप्रमाण छे, तेमांथी एक (स्थान) सर्वजघन्यरूप परिणमे, त्यां तेने योग्य सर्वजघन्य योगस्थानरूप परिणमे त्यारे ज जगतश्रेणीना असंख्यातमा भागनां योगस्थान अनुक्रमथी पूर्ण करे; पण वचमां अन्य योगस्थानरूप परिणमे ते अहीं गणतरीमां नथी. ए प्रमाणे योगस्थान पूर्ण थतां अनुभागस्थाननुं बीजुं स्थान परिणमे. त्यां पण ए ज प्रमाणे सर्व योगस्थान पूर्ण करे. त्यार पछी त्रीजुं अनुभागस्थान थाय. त्यां पण तेटलां ज योगस्थान भोगवे. ए प्रमाणे असंख्यातलोकप्रमाण अनुभागस्थान अनुक्रमे पूर्ण करे त्यारे बीजुं कषायस्थान लेवुं. त्यां पण उपर कहेला क्रमपूर्वक असंख्यात लोकप्रमाण अनुभागस्थान तथा जगत्श्रेणीना असंख्यातमा भागनां योगस्थान पूर्वोक्त क्रमपूर्वक भोगवे, त्यारे त्रीजुं कषायस्थान लेवुं; ए प्रमामे चोथुं
पांचमुं – छठ्ठुं आदि असंख्यात लोकप्रमाण कषायस्थान पूर्वोक्त क्रमपूर्वक पूर्ण करे त्यारे एक समय अधिक जघन्यस्थितिस्थान लेवुं. तेमां पण कषायस्थान, अनुभागस्थान अने योगस्थान उपर कहेला क्रमपूर्वक भोगवे. ए प्रमाणे बे समय अधिक जघन्यस्थितिथी मांडी त्रीस कोडाकोडी सागर सुधी ज्ञानावरणकर्मनी स्थिति पूर्ण करे. ए प्रमाणे सर्व मूळकर्मप्रकृतिओ तथा उत्तरकर्मप्रकृतिओनो क्रम जाणवो. ए रीते परिणमतां-परिणमतां अनंत काळ व्यतीत थाय छे; तेने एकठो करतां