एकत्वानुप्रेक्षा ]
अर्थः — जीव एकलो ज पुण्यनो संचय करे छे, जीव एकलो ज देवगतिनां सुख भोगवे छे, जीव एकलो ज कर्मनो क्षय करे छे, अने जीव एकलो ज मोक्षने प्राप्त करे छे.
भावार्थः — जीव एकलो ज पुण्योपार्जन करी स्वर्ग जाय छे अने जीव एकलो ज कर्मनाश करी मोक्ष जाय छे.
अर्थः — स्वजन अर्थात् कुटुंबी छे ते पण आ जीवने दुःख आवतां तथा तेने देखवा छतां पण, ते दुःखने लेश पण ग्रहण करवाने असमर्थ थाय छे. आ प्रमाणे प्रगटपणे जाणवा छतां पण आ जीव कुटुंब प्रत्येनुं ममत्व छोडतो नथी.
भावार्थः — पोताने थतुं दुःख पोते ज भोगवे छे, तेमां कोई भागीदार बनी शकतुं नथी; छतां आ जीवने एवुं अज्ञान छे के दुःख सहतो छतां पण परना ममत्वने छोडतो नथी.
हवे कहे छे के आ जीवने निश्चयथी एक धर्म ज शरण छेः —
अर्थः — आ जीवने पोतानो खरो हितस्वी निश्चयथी एक उत्तम क्षमादि दशलक्षणधर्म ज छे, कारण के ते धर्म ज देवलोकने प्राप्त करावे छे तथा ते धर्म ज सर्व दुःखना नाशने (मोक्षने) करे छे.