Swami Kartikeyanupreksha-Gujarati (Devanagari transliteration). 4. Ekatvanupreksha Gatha: 74-76.

< Previous Page   Next Page >


Page 42 of 297
PDF/HTML Page 66 of 321

 

४२ ]

[ स्वामिकार्त्तिकेयानुप्रेक्षा
४. एकत्वानुप्रेक्षा
इक्को जीवो जायदि इक्को गब्भम्हि गिह्णदे देहं
इक्को बाल-जुवाणो इक्को वुड्ढो जरागहिओ ।।७४।।
एकः जीवः जायते एकः गर्भे गृह्णाति देहं
एकः बालः युवा एकः वृद्धः जरागृहितः ।।७४।।

अर्थःजीव छे ते एकलो ऊपजे छे, ते एकलो ज गर्भमां देहने ग्रहण करे छे, ते एकलो ज बाळक थाय छे, ते एकलो ज युवान अने ते एकलो ज जरावस्थाथी ग्रसित वृद्ध थाय छे.

भावार्थःजीव एकलो ज जुदी जुदी अवस्थाओने धारण करे छे.

इक्को रोई सोई इक्को तप्पेइ माणसे दुक्खे
इक्को मरदि वराओ णरयदुहं सहदि इक्को वि ।।७५।।
एकः रोगी शोकी एकः तप्यते मानसैः दुःखैः
एकः म्रियते वराकः नरकदुःखं सहते एकः अपि ।।७५।।

अर्थःजीव एकलो ज रोगी थाय छे, जीव एकलो ज शोकार्त थाय छे, जीव एकलो ज मानसिक दुःखथी तप्तायमान थाय छे, जीव एकलो ज मरे छे अने जीव एकलो ज दीन बनी नरकनां दुःखो सहन करे छे.

भावार्थःजीव एकलो ज अनेक अनेक अवस्थाओने धारण करे छे.

इक्को संचदि पुण्णं इक्को भुंजेदि विविहसुरसोक्खं
इक्को खवेदि कम्मं इक्को वि य पावए मोक्खं ।।७६।।
एकः संचिनोति पुण्यं एकः भुनक्ति विविधसुरसौंख्यं
एकः क्षपति कर्म्म एकः अपि च प्राप्नोति मोक्षम् ।।७६।।