Swami Kartikeyanupreksha-Gujarati (Devanagari transliteration). Gatha: 93-94.

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राखवुं;ए तीव्रकषायी जीवोनां चिह्न छे
हवे कहे छे के आवा जीवोनुं आस्रवचिंतवन निष्फळ छेः
एवं जाणंतो वि हु परिचयणीए वि जो ण परिहरइ
तस्सासवाणुवेक्खा सव्वा वि णिरत्थया होदि ।।९३।।
एवं जानन् अपि स्फु टं परित्यजनीयान् अपि यः न परिहरति
तस्य आस्रवानुप्रेक्षा सर्वा अपि निरर्थका भवति ।।९३।।
अर्थःआ प्रमाणे प्रगट जाणवा छतां पण जे तजवा योग्य
परिणामोने छोडतो नथी तेनुं सर्व आस्रवचिंतवन निरर्थक छेकार्यकारी
नथी.
भावार्थःआस्रवानुप्रेक्षा चिंतवन करी प्रथम तो तीव्रकषाय
छोडवो, त्यार पछी शुद्धात्मस्वरूपनुं ध्यान करवुं अर्थात् सर्व कषाय छोडवो.
ए ज चिंतवननुं फळ छे, मात्र वार्ता ज करवी ए तो सफळ नथी.
एदे मोहजभावा जो परिवज्जेइ उवसमे लीणो
हेयमिदि मण्णमाणो आसवअणुपेहणं तस्स ।।९४।।
एतान् मोहजभावान् यः परिवर्जयति उपशमे लीनः
हेयं इति मन्यमानः आस्रवानुप्रेक्षणं तस्य ।।९४।।
अर्थःजे पुरुष उपर कहेला सघळा, मोहना उदयथी थयेला,
मिथ्यात्वादि परिणामोने छोडे छेकेवो थयो थको? उपशमपरिणाम जे
वीतरागभाव तेमां लीन थयो थको; तथा ए मिथ्यात्वादि भावोने हेय अर्थात्
त्यागवा योग्य छे एम जाणतो थको
तेने आस्रवानुप्रेक्षा होय छे.
(दोहरो)
आस्रव पंच प्रकारने, चिंतवी तजे विकार;
ते पामे निजरूपने, ए ज भावनासार.
इति आस्रवानुप्रेक्षा समाप्त.
५२ ]
[ स्वामिकार्त्तिकेयानुप्रेक्षा
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