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द्रव्यमां सूक्ष्म तो पुद्गलपरमाणु, क्षेत्रमां आकाशनो प्रदेश, काळमां समय तथा भावमां अविभागप्रतिच्छेद. ए चारेने परस्पर प्रमाण संज्ञा छे. अल्पमां अल्प तो आ प्रमाणे छे तथा वधारेमां वधारे द्रव्यमां तो महास्कंध, क्षेत्रमां आकाश, काळमां त्रणे काळ तथा भावमां केवळज्ञान जाणवुं. काळमां एक आवलीना जघन्ययुक्तासंख्यात समय छे, असंख्यात आवलीनुं एक मुहूर्त छे, त्रीस मुहूर्तनो एक रात्रिदिवस छे, त्रीस रात्रिदिवसनो एक मास छे अने बार मासनुं एक वर्ष छे. इत्यादि जाणवुं.
हवे प्रथम ज लोकाकाशनुं स्वरूप कहे छेः —
अर्थः — आकाशद्रव्यनो क्षेत्र-प्रदेश अनंत छे. तेना अति मध्यदेशमां अर्थात् वच्चोवच्चना क्षेत्रमां रहे छे ते लोक छे. ते (लोक) कोईए कर्यो नथी तथा कोई हरिहरादिए धारेलो वा राखेलो नथी.
भावार्थः — अन्यमतमां घणा कहे छे के — ‘‘लोकनी रचना ब्रह्मा करे छे, नारायण रक्षा करे छे, शिव संहार करे छे; काचबाए वा शेषनागे तेने धारण कर्यो छे, प्रलय थाय छे त्यारे सर्व शून्य थई जाय छे अने ब्रह्मनी सत्ता मात्र रही जाय छे तथा ए ब्रह्मनी सत्तामांथी (फरीथी) सृष्टिनी रचना थाय छे.’’ — इत्यादि अनेक कल्पित वातो कहे छे. ते सर्वनो निषेध आ सूत्रथी जाणवो. आ लोक कोईए करेलो नथी, कोईए (पोताना उपर) धारण करेलो नथी तथा कोईथी नाश पामतो नथी, जेवो छे तेवो ज श्री सर्वज्ञे दीठो छे अने ते ज वस्तुस्वरूप छे.
हवे आ लोकमां शुं छे? ते कहे छेः —