Swami Kartikeyanupreksha-Gujarati (Devanagari transliteration). Gatha: 116-117.

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लोकानुप्रेक्षा ]

[ ७१
अण्णोण्णपदेसेण य दव्वाणं अच्छणं भवे लोओ
दव्वाण णिवत्तो लोयस्य वि मुणह णिच्चत्तं ।।११६।।
अन्योन्यप्रदेशेन च द्रव्याणां आसनं भवेत् लोकः
द्रव्याणां नित्यत्वात् लोकस्य अपि जानीहि नित्यत्वम् ।।११६।।

अर्थःजीवादि द्रव्योना परस्पर एकक्षेत्रावगाहरूप प्रवेश अर्थात् मेळापरूप अवस्थान छे ते लोक छे. जे द्रव्यो छे ते नित्य छे तेथी लोक पण नित्य छे एम जाणो.

भावार्थःछ द्रव्योनो समुदाय छे ते लोक छे, ते (छए) द्रव्यो नित्य छे तेथी लोक पण नित्य ज छे.

हवे कोई तर्क करे केजो ते नित्य छे तो आ ऊपजे-विणसे छे ते कोण छे? तेना समाधानरूप सूत्र कहे छेः

परिणामसहादादो पडिसमयं परिणमंति दव्वाणि
तेसिं परिणामादो लोयस्स वि मुणह परिणामं ।।११७
परिणामस्वभावात् प्रतिसमयं परिणमन्ति द्रव्याणि
तेषां परिणामात् लोकस्य अपि जानीहि परिणामम् ।।११७।।

अर्थःआ लोकमां छए द्रव्यो छे ते परिणामस्वभावी छे तेथी तेओ समये समये परिणमे छे; तेमना परिणमवाथी लोकना पण परिणाम जाणो.

भावार्थःद्रव्यो छे ते परिणामी छे अने द्रव्योनो समुदाय छे ते लोक छे; तेथी द्रव्योना परिणाम छे ते ज लोकना पण परिणाम थया. अहीं कोई पूछे केपरिणाम एटले शुं? तेनो उत्तरःपरिणाम नाम पर्यायनुं छे; जे द्रव्य एक अवस्थारूप हतुं ते पलटाई अन्य अवस्थारूप थयुं ( ते ज परिणाम वा पर्याय छे). जेम माटी पिंड-अवस्थारूप हती, ते ज पलटाईने घट बन्यो. ए प्रमाणे परिणामनुं स्वरूप जाणवुं. अहीं लोकनो आकार तो नित्य छे तथा द्रव्योनी पर्याय पलटाय छे; ए अपेक्षाए परिणाम कहीए छीए.