लोकानुप्रेक्षा ]
अर्थः — जीवादि द्रव्योना परस्पर एकक्षेत्रावगाहरूप प्रवेश अर्थात् मेळापरूप अवस्थान छे ते लोक छे. जे द्रव्यो छे ते नित्य छे तेथी लोक पण नित्य छे एम जाणो.
भावार्थः — छ द्रव्योनो समुदाय छे ते लोक छे, ते (छए) द्रव्यो नित्य छे तेथी लोक पण नित्य ज छे.
हवे कोई तर्क करे के — जो ते नित्य छे तो आ ऊपजे-विणसे छे ते कोण छे? तेना समाधानरूप सूत्र कहे छेः —
अर्थः — आ लोकमां छए द्रव्यो छे ते परिणामस्वभावी छे तेथी तेओ समये समये परिणमे छे; तेमना परिणमवाथी लोकना पण परिणाम जाणो.
भावार्थः — द्रव्यो छे ते परिणामी छे अने द्रव्योनो समुदाय छे ते लोक छे; तेथी द्रव्योना परिणाम छे ते ज लोकना पण परिणाम थया. अहीं कोई पूछे के – परिणाम एटले शुं? तेनो उत्तरः — परिणाम नाम पर्यायनुं छे; जे द्रव्य एक अवस्थारूप हतुं ते पलटाई अन्य अवस्थारूप थयुं ( ते ज परिणाम वा पर्याय छे). जेम माटी पिंड-अवस्थारूप हती, ते ज पलटाईने घट बन्यो. ए प्रमाणे परिणामनुं स्वरूप जाणवुं. अहीं लोकनो आकार तो नित्य छे तथा द्रव्योनी पर्याय पलटाय छे; ए अपेक्षाए परिणाम कहीए छीए.