Swami Kartikeyanupreksha-Gujarati (Devanagari transliteration). Gatha: 118-119.

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[ स्वामिकार्त्तिकेयानुप्रेक्षा

हवे लोकनो आकार तो नित्य छेएम धारीने तेना व्यासादि (माप) कहे छेः

सत्तेक्क-पंच-इक्का मूले मज्झे तहेव बंभंते
लोयंते रज्जूओ पुव्वावरदो य वित्थारो ।।११८।।
सप्त-एकः-पंच-एकाः मूले मध्ये तथैव ब्रह्मान्ते
लोकान्ते रज्जवः पूर्वापरतः च विस्तारः ।।११८।।

अर्थःलोकनो नीचे मूळमां पूर्व-पश्चिम तो सात राजु विस्तार छे, मध्यमां एक राजु विस्तार छे. उपर ब्रह्मस्वर्गना अंतमां पांच राजु विस्तार छे तथा लोकना अंतमां एक राजुनो विस्तार छे.

भावार्थःआ लोकना नीचला भागमां पूर्व-पश्चिमदिशामां सात राजु पहोळो छे, त्यांथी अनुक्रमे घटतो घटतो मध्यलोकमां एक राजु रहे छे, पछी उपर अनुक्रमे वधतो वधतो ब्रह्मस्वर्गना अंतमां पांच राजु पहोळो थाय छे, पछी घटतो घटतो अंतमां एक राजु रहे छे, ए प्रमाणे थतां दोढ मृदंग ऊभां मूकीए तेवा आकार थाय छे.

हवे दक्षिण-उत्तर विस्तार वा उंचाई कहे छेः

दक्खिण-उत्तरदो पुण सत्त वि रज्जू हवंति सव्वत्थ
उड्ढो चउदश रज्जू सत्त वि रज्जू घणो लोओ ।।११९।।
दक्षिणोत्तरतः पुनः सप्त अपि रज्जवः भवन्ति सर्वत्र
ऊर्ध्वः चतुर्दश रज्जवः सप्त अपि रज्जवः घनः लोकः ।।११९।।

अर्थदक्षिण-उत्तर दिशामां सर्वत्र आ लोकनो विस्तार सात राजु छे, उंचाई चौद राजु छे तथा सात राजुनुं घनप्रमाण छे.

भावार्थःदक्षिण-उत्तर सर्वत्र सात राजु पहोळो अने चौद राजु ऊंचाईमां छे एवा लोकनुं घनफळ करवामां आवे त्यारे ते ३४३ घनराजु थाय छे. एक राजु पहोळाई, एक राजु लंबाई तथा एक राजुनी ऊंचाईवाळा समान क्षेत्रखंडने घनफळ कहेवामां आवे छे.