लोकानुप्रेक्षा ]
अर्थः — मेरुना नीचेना भागमां सात राजु अधोलोक छे, उपर सात राजु ऊर्ध्वलोक छे अने वच्चे मेरु समान लाख योजननो मध्यलोक छे. ए प्रमाणे त्रण लोकनो विभाग जाणवो.
हवे ‘लोक’ शब्दनो अर्थ कहे छेः —
अर्थः — ज्यां जीवादिक पदार्थ जोवामां आवे छे तेने लोक कहे छे; तेना शिखर उपर अनंत सिद्धो बिराजे छे.
भावार्थः — व्याकरणमां दर्शनना अर्थमां ‘लुक्’ नामनो धातु छे; तेना आश्रयार्थमां अकार प्रत्ययथी ‘लोक’ शब्द नीपजे छे. तेथी जेमां जीवादिक द्रव्यो जोवामां आवे तेने ‘लोक’ कहेवामां आवे छे. तेना उपर अंत(भाग)मां कर्मरहित अने अनंत गुणसहित अविनाशी अनंत शुद्ध जीव बिराजे छे.
हवे, आ लोकमां जीवादिक छ द्रव्य छे तेनुं वर्णन करे छे. त्यां प्रथम ज जीवद्रव्य विषे कहे छेः —
१‘वायरा’ एवो पण पाठ छे. तेनो एवो अर्थ छे के सर्व लोकमां पृथ्वीकायादिक