Tattvagyan Tarangini-Gujarati (Devanagari transliteration).

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][ तत्त्वज्ञान-तरंगिणी
अर्थ :जे समस्त विश्वने एकसाथे देखे छे, जाणे छे,
नोकर्म अने कर्मनां समस्त परमाणुओथी मुक्त छे, तेने शुद्ध चिद्रूप
जाणवो. २.
अर्थात् यथास्थितान् सर्वान् समं जानाति पश्यति
निराकुलो गुणी योऽसौ शुद्धचिद्रूप उच्यते ।।।।
सर्वे पदार्थ यथार्थ युगपद् जे सदा जाणे जुवे,
ते शुद्ध चिद्रूप स्वगुण निर्भर सुख निराकुळ अनुभवे. ३.
अर्थ :जे, यथास्थित सर्व पदार्थोने एक साथे जाणे छे
अने देखे छे, आकुळता रहित छे, गुणवान छे, तेने शुद्ध चिद्रूप कहे
छे. ३.
स्पर्शरसगंधवर्णैः शब्दैर्मुक्तो निरंजनः स्वात्मा
तेन च खैरग्राह्योऽसावनुभावनागृहीतव्यः ।।।।
स्वात्मा निरंजन स्पर्श रस रुप गंधा शब्द विहीन ए,
तेथी न £न्द्रिय ग्राıा पण अनुभावनाए ग्राıा ए. ४.
अर्थ :पोतानो आत्मा स्पर्श, रस, गंध, रूपथी, शब्दथी
रहित छे, निरंजन छे अने तेथी इन्द्रियो वडे ग्रहावा योग्य नथी, ते
अनुभावनाथी (आत्मभावनाथी) ग्रहण थवा योग्य छे.
सप्तानां धातूनां पिंडो देहो विचेतनो हेयः
तन्मध्यस्थोऽवैतीक्षतेऽखिलं यो हि सोहं चित् ।।।।
तन तो अचेतन सात धाातुपिंM तजवा योग्य ते,
ते मधय रही जाणे जुवे जे ते हुं चिद्रूप मुज ए. ५.
अर्थ :देह ते सात धातुओनो समूह छे, अचेतन छे, हेय
छे, तेनी मध्यमां रहेलो जे सर्वने जाणे छे, देखे छे ते हुं ज्ञानस्वरूप
आत्मा छुं. ५.