Tattvagyan Tarangini-Gujarati (Devanagari transliteration).

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९८ ][ तत्त्वज्ञान-तरंगिणी
अर्थ :जेम तप विना ॠद्धि प्रगटती नथी, पिता विना पुत्री
प्रगटती नथी अने वादळां विना वरसाद थतो नथी, तेम रत्नत्रय विना
चिद्रूपनी प्राप्ति थती नथी. ३.
दर्शनज्ञानचारित्रस्वरूपात्मप्रवर्तनं
युगपद् भण्यते रत्नत्रयं सर्वजिनेश्वरैः ।।।।
दर्शनज्ञान चारित्रस्वरुपे आत्मा युगपद् वर्ते;
आत्मप्रवर्तन ते रत्नत्रय, जिनवर वचन प्रवर्तेरे.
भविका रत्नत्रय आदरिये. ४.
अर्थ :दर्शन, ज्ञान, चारित्रस्वरूपे आत्मानुं एकसाथ जे
प्रवर्तन तेने सर्व जिनेश्वरो रत्नत्रय कहे छे. ४.
निश्चयव्यवहाराभ्यां द्विधा तत्परिकीर्तितं
सत्यस्मिन् व्यवहारे तन्निश्चयं प्रकटीभवेत् ।।।।
निश्चय ने व्यवहार रत्नत्रय, बे भेदे ए भाख्युं,
ए व्यवहार होय त्यां निश्चय, प्रगटे कारण दाख्युं रे.
भविका रत्नत्रय आदरिये. ५.
अर्थ :ते रत्नत्रय निश्चय अने व्यवहार एम बे भेदे वर्णव्युं
छे. ज्यां ए व्यवहाररूप रत्नत्रय होय त्यां ते निश्चय रत्नत्रय प्रगट
थाय छे. ५.
श्रद्धानं दर्शनं सप्ततत्त्वानां व्यवहारतः
अष्टांगं त्रिविधं प्रोक्तं तदौपशमिकादितः ।।।।
सात तत्त्वनी श्रद्धा जाणो, सद्दर्शन व्यवहारे;
आL अंगयुत ने वळी उपशम आदि त्रण प्रकारे रे.
भविका रत्नत्रय आदरिये. ६.