Tattvagyan Tarangini-Gujarati (Devanagari transliteration).

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अध्याय-१२ ][ ९९
अर्थ :सात तत्त्वोनी श्रद्धाने व्यवहारथी दर्शन कह्युं छे, ते
आठ अंगयुक्त छे. तेने उपशम आदि भेदथी त्रण प्रकारनुं कह्युं
छे. ६.
सता वस्तूनि सर्वाणि स्याच्छब्देन वचांसि च
चिता जगति व्याप्तानि पश्यन् सद्दृष्टिरुच्यते ।।।।
सत् रुपे वस्तु सौ श्रद्धे, स्याद्वादे सौ वाणी;
ज्ञानद्रष्टिथी जग सौ जोतां, ते सद्द्रष्टि ज्ञानी रे.
भविका रत्नत्रय आदरिये. ७.
अर्थ :सर्व वस्तुओने अस्तित्व स्वरूपे जोतांश्रद्धता अने
(तेना वाचक) वचनोने स्याद्वाद एटले अनेकांतद्रष्टिए (अने)
जगतमां व्यापेल सर्व पदार्थोने ज्ञानद्रष्टिए जोनार सम्यग्द्रष्टि
कहेवाय छे. ७.
स्वकीये शुद्धचिद्रूपे रुचिर्या निश्चयेन तत्
सद्दर्शनं मतं तज्ज्ञैः कर्मेंधनहुताशनं ।।।।
सहज आत्म निज रुप विषे जे, रुचि ते सद्दर्शनने;
निश्चयथी ज्ञानीओ माने, बाळे कर्म §धानने रे.
भविका रत्नत्रय आदरिये. ८.
अर्थ :पोताना शुद्ध चिद्रूपमां जे रुचि तेने तेना जाणनारा
ज्ञानीओ निश्चयथी कर्मरूप इंधनने बाळनार अग्नि समान सम्यग्दर्शन
कहे छे. ८.
यदि शुद्धं चिद्रूपं निजं समस्तं त्रिकालगं युगपत्
जानन् पश्यन् पश्यति तदा स जीवः सुदृक् तत्त्वात् ।।।।
त्रणे कालवर्ती निज चिद्रूप शुद्ध सर्व एक साथे;
जाणे देखे जे श्रद्धे ते सद्द्रष्टि परमार्थे रे;
भविका रत्नत्रय आदरिये. ९.