Tattvagyan Tarangini-Gujarati (Devanagari transliteration). Adhyay-15 : Shuddh Chidrupni Prapti Mate Par Dravyona Tyagano Updesh.

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अधयाय १५ मो
[ शुद्ध चिद्रूपनी प्राप्ति माटे
पर द्रव्योनां त्यागनो उपदेश ]
गृहं राज्यं मित्रं जनकअननीं भ्रातृपुत्रं कलत्रं
सुवर्णं रत्नं वा पुरजनपदं वाहनं भूषणं वै
खसौख्यं क्रोधाद्यं वसनमशनं चित्तवाक्कायकर्म-
त्रिधा मुंचेत् प्राज्ञः शुभमपि निजं शुद्धचिद्रूपलब्ध्यै
।।।।
(हरिगीत छंद)
गृह राज्य पुत्र कलत्र मित्रो भ्रात मात पिता भलां,
आहार वाहन वस्त्रभूषण रत्न पुरजन निज मªयां;
£न्द्रिय सुख क्रोधाादि भावो वचन तन मनथी त्रिधाा,
ते सर्व चिद्रूप प्राप्ति माटे प्राज्ञ त्यागे सर्वथा. १.
अर्थ :ज्ञानी अनुकूळ छतां पोतानां घर, राज्य, मित्र, पिता
माता, भाई, पुत्र, स्त्री, सुवर्ण, रत्न तथा नगर, देश, वाहन, भूषण,
इन्द्रियसुख, क्रोधादि कषाय भाव, वस्त्र, भोजननो मन, वचन, कायाए
करी (त्रण प्रकारे) शुद्ध चिद्रूपनी प्राप्ति माटे त्याग करे छे. १.
सुतादौ भार्यादौ वपुषि सदने पुस्तक धने
पुरादौ मंत्रादौ यशसि पठने राज्यकदने
गवादौ भक्तादौ सुहृदि दिवि वाहे खविषये
कुधर्मे वांछा स्यात् सुरतरुमुखे मोहवशतः
।।।।
स्त्री, पुत्र पुत्री शरीर पुस्तक धााम धान आदि विषे,
पुर मंत्र यश पाLन पLन के राज्य विग्रहमां दीसे;