Tattvagyan Tarangini-Gujarati (Devanagari transliteration).

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अध्याय-१४ ][ १२१
भोजनं क्रोधलोभादि कुर्वन् कर्मवशात् सुधीः
न मुंचति क्षणार्द्धं स शुद्धचिद्रूपचिंतनं ।।२२।।
अन्यनी साथे कंइ वात करतां जतां,
पLन पाLन तथा हास्य करतां;
कर्मने वश वळी खानपानादि के,
क्रोधा लोभादि परभाव भजतां;
शुद्ध चिद्रूपचिंतन कदी पण नह{,
अर्धा क्षण मात्र धाीमंत तजता. २१-२२.
अर्थ :सम्यक्ज्ञानी बीजाओ साथे बोलतां, हसतां, जतां,
(बीजाओने) शास्त्र भणावतां के भणतां, आसन शयन करतां, कर्मवशे
शोक, रुदन, भय, भोजन के क्रोध लोभादि करतां (छतां पण) शुद्ध
चिद्रूपनां चिंतनने ते अर्धी क्षण माटे पण छोडतो नथी. २१-२२.