Tattvagyan Tarangini-Gujarati (Devanagari transliteration).

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अध्याय-१५ ][ १२९
दिक्चेलैको हस्तपात्रो निरीहः
साम्यारूढस्तत्त्ववेदी तपस्वी
मौनी कर्मौधेभसिंहो विवेकी
सिद्धयै स्यात्स्वे चित्स्वरूपेऽभिरक्तः
।।२०।।
दिग् वस्त्र मात्र करपात्र, तपस्वी, मौनी,
निस्पृह, साम्यपद आरुढ, तत्त्वज्ञानी;
ते कर्महस्ती प्रति सिंह, विवेकबुद्धि,
आत्मीय चिद्स्वरुप रकत, वरे स्वसिद्धि. २०.
अर्थ :दिशाओ जेमनुं वस्त्र छे, जेमने हाथ ए ज (भोजन
पान माटेनुं एक) पात्र छे, जे निस्पृह छे, समताश्रेणी उपर चढेला
छे, आत्मज्ञानी, तपस्वी, मौनी, कर्मोना समूहरूप हाथीओने हणवाने
सिंह समान छे, भेदज्ञानी अने पोताना आत्मस्वरूपमां तल्लीन छे, ते
ज मोक्ष मेळववाने योग्य थाय छे.