Tattvagyan Tarangini-Gujarati (Devanagari transliteration).

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१२८ ][ तत्त्वज्ञान-तरंगिणी
परद्रव्यनुं चिंतन कर्मबंधनुं कारण छे. विशुद्ध आत्मद्रव्यनुं चिंतन
ते केवळ मोक्षनुं ज कारण छे. १६.
प्रादुर्भवंति निःशेषा गुणाः स्वाभाविकाश्चितः
दोषा नश्यंत्यहो सर्वे परद्रव्यवियोजनात् ।।१७।।
समस्तकर्मदेहादिपरद्रव्यविमोचनात्
शुद्धस्वात्मोपलब्धिर्या सा मुक्तिरिति कथ्यते ।।१८।।
चिद्रूपना निःशेष स्वाभाविक गुणो प्रगटे बधाा,
ते दोष क्षय थाये सकल परद्रव्ये त्याग्ये सर्वथा;
निःशेष कर्म शरीर आदि अन्य द्रव्यो त्यागतां,
निज सहज आत्मस्वरुप प्राप्ति ते ज मुकित कथाय त्यां. १७-१८.
अर्थ :आश्चर्यनी वात छे के परद्रव्यना त्यागथी आत्माना
समस्त स्वाभाविकगुणो प्रगट थाय छे (अने) सर्व दोषो नाश पामी
जाय छे. १७.
सर्व कर्म देह आदि परद्रव्यना त्यागथी जे शुद्ध स्व आत्मानी
प्राप्ति ते ज मोक्ष कहेवाय छे. १८.
अतः स्वशुद्धचिद्रूपलब्धये तत्त्वविन्मुनिः
वपुषा मनसा वाचा परद्रव्यं परित्यजेत् ।।१९।।
(वसंततिलका छंद)
तेथी स्व शुद्ध सहजात्म स्वरुप प्राप्ति,
जे तत्त्वज्ञानी मुनिवर्य चहे सदापि;
ते तो शरीर मनने वचने त्रियोगे,
द्रव्यो अनात्म सघाळां अति शीघा्र त्यागे. १९.
अर्थ :तेथी आत्मज्ञानी मुनि निज शुद्धात्मस्वरूपनी प्राप्ति
माटे शरीरथी, मनथी अने वचनथी परद्रव्यने तजी दे छे. १९.