Tattvagyan Tarangini-Gujarati (Devanagari transliteration).

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अध्याय-१६ ][ १३१
इंदोर्वृद्धौ समुद्रः सरिदमृतबलं वर्द्धते मेघवृष्टे-
र्मोहानां कर्मबंधो गद इव पुरुषस्याभुक्तेरवश्यं
नानावृत्ताक्षराणामवनिवरतले छंदसां प्रस्तरश्च
दुःखौघागो विकल्पास्त्रववचनकुलं पार्श्ववर्यगिनां हि
।।।।
चन्द्र वधो त्यां जलधिा वधातो, वृष्टि वधये नदी नीर अथाग,
मोहवृद्धिथी कर्म वधो, वळी अपकव अन्ने व्याधिा-विपाक,
विविधा छंद अक्षर वृद्धिथी वधो छंद प्रस्तार विशेष,
तेम समीपवासी संगे बहु वचन विकल्प वधो दुःख दोष. ३.
अर्थ :जेवी रीते चंद्रनी वृद्धि थतां समुद्र वधे छे (भरती
आवे छे), मेघवृष्टिनी वृद्धिथी नदीनां पाणीनुं बळ वधे छे, मोहनी
वृद्धिमां कर्मबंध वधे छे, मनुष्यने काचा भोजनथी अवश्य रोगनी माफक,
पृथ्वीना सुंदर तळमां जुदा जुदा छंदमां अक्षरोनी वृद्धि थतां छंदोनो
प्रस्तार वधे छे, तेम नजीकमां रहेला प्राणीओनी संगति वधवाथी
निश्चयथी दुःखोनो समूह अने दोष, विकल्पना आगमनना कारणरूप
वचनोनो समूह वधे छे. ३.
वृद्धिं यात्येधसो वन्हिर्वृद्धौ धर्मस्य वा तृषा
चिन्ता संगस्य रोगस्य पीडा दुःखादि संगतेः ।।।।
अग्नि जेम वधो £न्धानथी, तृषा तापथी वधाती जाय,
चिंता संगथी, व्यथा व्याधिाथी, दुःखादि संगतिथी थाय. ४.
अर्थ :इन्धननी वृद्धिथी जेम अग्नि वृद्धि पामे छे अने
उकळाटनी वृद्धिथी तरस वधे छे, संगनी वृद्धिथी चिंता वधे छे, रोगनी
वृद्धिथी पीडा वधे छे, तेम चेतन
अचेतन पदार्थोनी संगतिनी वृद्धिथी
दुःखादि वधे छे. ४.
विकल्पः स्याज्जीवे निगडनगजंबालजलधि
प्रदावाग्न्यातापप्रगदहिमताजालसदृशः