Tattvagyan Tarangini-Gujarati (Devanagari transliteration).

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२४ ][ तत्त्वज्ञान-तरंगिणी
क्षेत्र, काळ अने भाव ए चारने बळपूर्वक तजी दे अने हितरूप द्रव्यादि
चारने प्रयत्नपूर्वक अवलंबे. ४.
संगं विमुच्य विजने वसंति गिरिगह्वरे
शुद्धचिद्रूपसंप्राप्त्यै ज्ञानिनोऽन्यत्र निःस्पृहाः ।।।।
ज्ञानीजनो पर विषे, अति निःस्पृही जे,
प्राप्ति सदा विमल चिद्रूपनी चही ते;
सौ संग आuाव महा गणीने तजे ए,
एकांतवास गिरिग¯रने भजे ए. ५.
अर्थ :ज्ञानीजनो परभावोमां निस्पृह थईने शुद्ध चिद्रूपनी
संप्राप्ति माटे, संगनो त्याग करीने, एकांत गिरिगुफामां वसे छे. ५.
स्वल्पकार्यकृतौ चिंता महावज्रायते ध्रुवं
मुनीनां शुद्धचिद्रूपध्यानपर्वत भंजने ।।।।
शुद्धचिद्रूपसद्धयानभानुरत्यंतनिर्मलः
जनसंगतिसंजातविकल्पाब्दैस्तिरोभवेत् ।।।।
चिंता जराय पर कार्यनी व» भारे,
चिद्रूप धयान गिरि ए मुनिनो विदारे;
चिद्रूप धयान रवि निर्मळ ते छवाये,
विकल्प मेघा जनसंगतिजन्य आव्ये. ७.
अर्थ :मुनिओने शुद्ध चिद्रूपना ध्यानरूप पर्वत तोडवाने माटे
अल्प कार्य अंगे करेली चिंता निश्चयथी महान वज्र जेवी बने छे. ६.
मनुष्योना संगथी उत्पन्न थता विकल्परूप वादळो वडे, अत्यंत
निर्मळ, शुद्ध आत्मध्यानरूप सूर्य ढंकाई जाय छे. ७.
अभव्ये शुद्धचिद्रूपध्यानस्य नोद्भवो भवेत्
वंध्यायां किल पुत्रस्य विषाणस्य खरे यथा ।।।।