Tattvagyan Tarangini-Gujarati (Devanagari transliteration).

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२६ ][ तत्त्वज्ञान-तरंगिणी
तत्तस्य गतचिंता निर्जनताऽऽसन्न भव्यता
भेदज्ञानं परस्मिन्निर्ममता ध्यानहेतवः ।।१२।।
चिंता अभाव वळी निर्जनवास भावे,
आसन्नभव्यपणुं, भेद विबोधा पावे;
देहादि सर्व परमांथी ममत्व जाये,
ए धयान हेतु नररत्न विषे सुहाये. १२.
अर्थ :तेथी चिंतानो अभाव, एकांतवास, समीप
मुक्तिगामीपणुं, भेदविज्ञान, परमां निर्ममता, तेना ध्यानना हेतुओ
छे. १२.
नृस्त्रीतिर्यग्सुराणां स्थितिगतिवचनं नृत्यगानं शुचादि
क्रीड़ाक्रोधादि मौनं भयहसनजरारोदनस्वापशूकाः
व्यापाराकाररोगं नुतिनतिकदनं दीनतादुःखशंकाः
श्रृंगारादीन् प्रपश्यन्नमिह भवे नाटकं मन्यते ज्ञः
।।१३।।
(शार्दूलविक्रीडित)
संसारे नर नारी देव पशुनां, स्थिति गति गानने,
वाणी नृत्य क्रीMा पीMा रुदनने क्रोधाादिने मौनने;
आकृति स्तुति सौ प्रवृत्ति भीतिने व्याधिा जरा दुःखने,
जोता नाटक मानि ज्ञानी सम ते शृंगार के शोकने. १३.
अर्थ :आ संसारमां मनुष्य, स्त्री, पशु अने देवोनी स्थिति,
गति, वचनने, नृत्यने, गीतने, शोक आदिने, क्रीडाने, क्रोधने, मौनने,
भय, हास्य, जरा, रुदन, निद्रा तथा जुगुप्साने, व्यापार, आकृति,
रोगने, स्तुति, प्रणाम, पीडाने, दीनता, दुःख, शंकाने, भोजनने,
शृंगारादिने वास्तविक रूपे जोतां ज्ञानी नाटक माने छे. १३.
चक्रींद्रयोः सदसि संस्थितयोः कृपा स्या-
त्तद्भार्ययोरतिगुणान्वितयोर्घृणा च