Tattvagyan Tarangini-Gujarati (Devanagari transliteration).

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अध्याय-३ ][ २७
सर्वोत्तमेंद्रियसुखस्मरणेऽतिकष्टं
यस्योद्धचेतसि स तत्त्वविदां वरिष्ठः
।।१४।।
चक्री £न्द्रसभा विराजित अहा ! देखी दया आवती,
राणी के शचि सुंदरांगी रतिशी, जोतां घाृणा जागती;
सर्वोत्कृष्ट सुखो स्मर्ये विषयनां आपे स्मृति दुःखनी,
चित्ते ए प्रगटाो विवेक नर ते तत्त्वज्ञ शिरोमणि. १४.
अर्थ :जेमना उच्च चित्तमां, सभामां विराजित चक्रवर्ती के
इन्द्रनी उपर दया आवे, रति समानरूप अने अतिशय गुणयुक्त तेमनी
स्त्रीओ, चक्रवर्तीनी पटराणी तथा इन्द्रनी इन्द्राणीनी उपर अणगमो
आवे तथा सर्वोत्तम इन्द्रिय सुखना स्मरणथी अत्यंत कष्ट थाय, ते
तत्त्वज्ञानीओमां सर्वोत्तम छे. १४.
रम्यं वल्कलपर्णमंदिरकरीरं कांजिकं रामठं
लोहं ग्रावनिषादकुश्रुतमटेद् यावन्न यात्यंबरं
सौधं कल्पतरुं सुधां च तुहिनं स्वर्णं मणिं पंचमं
जैनीवाचमहो तथेंद्रियभवं सौख्यं निजात्मोद्भवं
।।१५।।
(हरिगीत)
दिव्य वस्त्रो महेल सुरतरु के सुधाा कंचन मणि,
जिनेन्द्रवाणी आत्मसुखने ज्यां सुधाी पाम्या नथी;
त्यां सुधाी वल्कल पर्णकुटी करीर कांजी लोहने,
पथ्थर कुश्रुति विषयसुख अति रम्य लागे लोकने. १५.
अर्थ :जेम, ज्यां सुधी जीवने दिव्य वस्त्र, महेल, कल्पतरु,
अमृत, कपूर, सुवर्ण, मणिरत्न, कोयलनो स्वर अने जिनेन्द्रनी
दिव्यवाणी प्राप्त थती नथी; त्यां सुधी आश्चर्यनी वात छे के ते वल्कलने
(झाडनी छालना वस्त्रो), घासपर्णनी झुंपडी, केरडा, राख, हिंग, लोढुं,
पथ्थर, हाथीनो कर्कश स्वर अने कुशास्त्रने रम्य मानीने तेने माटे भटके