Tattvagyan Tarangini-Gujarati (Devanagari transliteration).

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२८ ][ तत्त्वज्ञान-तरंगिणी
छे, तेवी रीते ज्यां सुधी जीवने निज आत्मिक सुखनी प्राप्ति थती नथी
त्यां सुधी जीव इन्द्रियजनित सुख तरफ भटके छे. १५.
केचिद् राजादिवार्तां विषयरतिकलाकीर्तिरैप्राप्तिचिंतां
संतानोद्भूत्युपायं पशुनगविगवां पालवं चान्ससेवां
स्वापक्रीडौषधादीन् सुरनरमनसां रंजनं देहपोषं
कुर्वंतोऽस्यंति कालं जगति च विरलाः स्वस्वरूपोपलब्धिं
।।१६।।
राजादिनी विकथा विषे £न्द्रियरति कीर्ति कला,
धान तनय £च्छा, अन्य सेवा, पशु वृक्ष पक्षीनी लला;
औषधा शयन क्रीMा शरीरपोषण मनुज सुर रंजने,
सौ व्यर्थ काल वीतावता, विरला ज चिद्रूप चिंतने. १६.
अर्थ :जगतमां केटलाक जीवो राजादिनी वार्ता, विषयभोग,
स्त्रीरति, कला, कीर्ति अने धनप्राप्तिनी चिंता, संताननी उत्पत्तिना उपाय,
पशु, वृक्ष, पक्षी, गाय, बळदना पालन अने अन्यनी सेवा, निद्रा, क्रीडा,
औषध आदि सुर अने नरोना मनने रंजन, देहनुं पोषण करतां थकां
काळने गुमावी दे छे अने अति अल्प जीवो स्वस्वरूपनी प्राप्ति करवामां
काळ वीतावे छे. १६.
वाचांगेन हृदा शुद्धचिद्रूपोहमिति ब्रुवे
सर्वदानुभवामीह स्मरामीति त्रिधा भजे ।।१७।।
शुद्धचिद्रूपसद्ध्यानहेतुभूतां क्रियां भजेत्
सुधीः कांचिच्च पूर्वं तद्ध्याने सिद्धे तु तां त्यजेत् ।।१८।।
(मालिनी)
तन मन वचने हुं, शुद्ध चिद्रूप सेवुं,
अनुभवुं स्मरुं गा. भकितथी नित्य धयावुं;
सहज स्वरुपधयाने कार्यकारी क्रिया जे,
विमल-मति भजे सौ धयान सिद्धे तजे ते. १७-१८