Tattvagyan Tarangini-Gujarati (Devanagari transliteration).

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३४ ][ तत्त्वज्ञान-तरंगिणी
पूर्वे दीLेल त्यम वारिधिा वृक्षने जे,
के ग्राम मानव पशु सघाळां स्मरे छे;
शास्त्रोथी सांभळी नदी Òद मेरु सर्वे,
द्वीपादि लोकस्थिति जे स्मृतिमां धारे छे;
£न्द्रियना विषय कार्य करेल पूर्वे,
जेने त्रिकाळ उरमां वळी याद आवे;
अंशे अनुभवी स्मृति थकी ते कळाये,
संपूर्ण चिन्मय निजात्म प्रतीत थाये. ५.
अर्थ :जेम अन्न, पथ्थर, अर्ग, अफीण अने तेवा बीजा
पदार्थोने ते दरेकना आंशिक स्पर्शथी ते दरेक संपूर्णपणे ओळखाय छे.
केरी, कसीस, जळ जेवा पदार्थोने दरेकना स्वादथी (चाखवाथी) संपूर्णपणे
ओळखी शकाय छे. घी वगेरे पदार्थोने गंध वडे ज, वस्त्र जेवा पदार्थोने
द्रष्टि वडे (जोवाथी) अने झालर, घंट, गीत आदिने शब्द सांभळवाथी
ओळखी शकाय छे तथा शास्त्रादिनो मन वडे निश्चय थाय छे, वळी पूर्वे
जोयेला पर्वत, समुद्र, वृक्ष, नगर, पशु अने मनुष्योनी सिद्धांत
(शास्त्र)मां कहेला मेरु, सरोवर, नदी, द्वीप आदि लोकस्थितिनी,
इन्द्रियोना विषयोनी, पूर्वे करेला कार्योनी परंपरानी त्रणे काळ संबंधी
ओळखाण (निश्चय) थई शके छे; तेवी ज रीते शुद्ध चिद्रूपनी स्मृति वडे,
अंशे अनुभवथी तेनुं संपूर्णपणुं जे पोतानो आत्मा-केवळ ज्ञानमय छे,
तेनो निश्चय कराय छे. ४
५.
द्रव्यं क्षेत्रं च कालं च भावमिच्छेत् सुधीः शुभं
शुद्धचिद्रूपसंप्राप्ति हेतुभूतं निरंतरं ।।।।
न द्रव्येन न कालेन न क्षेत्रेण प्रयोजनं
के नचिन्नैव भावेन लब्धे शुद्धचिदात्मके ।।।।
तो द्रव्यक्षेत्र शुभ काळ स्वभाव सर्वे,
चिद्रूप प्राप्ति सदुपाय सदाय सेवे;