Tattvagyan Tarangini-Gujarati (Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


Page 52 of 153
PDF/HTML Page 60 of 161

 

background image
५२ ][ तत्त्वज्ञान-तरंगिणी
परम ब्रÙ चिंतन तल्लीन हुं मने कोइ भय शाप दीए,
वस्तुहरण, चूरण, वधा, ताMन, छेद, भेद, बहु दुःख दीए;
गिरि अग्नि अब्धिा नव कूपे फxके वजो हणे भले,
भले हास्य निंदादि करो, पण अल्पचित्त मुज नहि मळे. ४.
अर्थ :शुद्ध परमात्मानी स्मृतिमां सर्वदा लीन एवा मने जो
कोई शाप आपे अथवा वस्तुओनुं हरण करे, चूरचूर करे, वध करे,
ताडन करे, छेदे, भेदे, गदादिथी मारे, बाळे, मश्करी करे, निंदे, पीडे,
वज्र मारा उपर फेंके, अग्निमां, समुद्रमां, पर्वत के वृक्ष उपरथी नीचे
फेंके, कादवमां, कूवामां, वनमां के भूमि उपर फेंके, अपमानित करे के
भय उपजावे तो भले तेम करो. ४.
चंद्रार्कभ्रमवत्सदा सुरनदीधारौधसंपातव
ल्लोकेस्मिन् व्यवहारकालगतिवद् द्रव्यस्य पर्यायवत्
लोकाधस्तलवातसंगमनवत् पद्मादिकोद्भूतिवत्
चिद्रूपस्मरणं निरंतरमहो भूयाच्छिवाप्त्यैमम्
।।।।
चंद्र सूर्य गति जेम निरंतर, सुर नदीवहन सदाय यथा,
पल पल काल गति सम लोके, द्रव्य विषे पर्याय सदा;
लोक नीचे घान आदि पवनवत् जलमां कमलोत्पत्ति यथा,
चिद्रूपस्मरण निरंतर चित्ते शिवदायी मुज बनो तथा. ५.
अर्थ :आ लोकमां सदाय सूर्य चंद्रना भ्रमणनी पेठे, गंगा
नदीना प्रवाहना वहननी माफक, व्यवहारकाळनी गतिनी पेठे, द्रव्यनी
पर्यायनी जेम, लोकनी नीचे धनवात, तनवात वगेरे पवनोना निरंतर
गमननी माफक, (सरोवरोमां) कमळ आदिनी निरंतर उत्पत्ति थया करे
छे तेम अहो, मारा मनमां पण निरंतर शुद्ध आत्मानुं स्मरण थया करो
के जेथी मने मोक्षरूप परम कल्याणनी प्राप्ति थाय. ५.
इति हृत्कमले शुद्धचिद्रूपोऽहं हि तिष्ठतु
द्रव्यतो भावतस्तावद् यावदंगे स्थितिर्मम ।।।।