Tattvagyan Tarangini-Gujarati (Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


Page 65 of 153
PDF/HTML Page 73 of 161

 

background image
अध्याय-७ ][ ६५
निश्चयं क्वचिदालंब्य व्यवहारं क्वचिन्नयं
विधिना वर्त्तते प्राणी जिनवाणीविभूषितः ।।२१।।
निश्चय अवलंबने कवचित् मनमोहन मेरे,
कवचित् भजे व्यवहार रे, मनमोहन मेरे;
जिनवाणी भूषित जनो, मनमोहन मेरे,
वर्ते विधिा ग्रही सार रे, मनमोहन मेरे. २१.
अर्थ :जिनवाणीथी विभूषित प्राणी क्यारेक निश्चयने
अवलंबीने अने क्यारेक व्यवहारने अवलंबीने वर्ते छे. २१.
व्यवहाराद्बहिः कार्यं कुर्याद्विधिनियोजितं
निश्चयं चांतरं धृत्वा तत्त्वेदी सुनिश्चलं ।।२२।।
तत्त्वज्ञानी अंतर विषे मनमोहन मेरे,
धारी निश्चय सुस्थिर रे मनमोहन मेरे;
बाıा क्रिया व्यवहारथी मनमोहन मेरे,
करता विधिा वश धाीर रे मनमोहन मेरे. २२.
अर्थ :तत्त्वज्ञानी निश्चयने अंतरमां अत्यंत निश्चलपणे धारण
करीने प्रारब्धयोगे संप्राप्त बाह्य कार्य बहारथी व्यवहारने अवलंबीने
करे. २२.
शुद्धचिद्रूपसंप्रार्प्तिनयाधीनेति पश्यतां
नयादिरहितं शुद्धचिद्रूपं तदनंतरं ।।२३।।
निर्मल चिद्रूप प्राप्ति तो मनमोहन मेरे,
देखो नय आधाीन रे, मनमोहन मेरे;
पछी शुद्ध चिद्रूप तो मनमोहन मेरे,
विमल नयादि विहीन रे मनमोहन मेरे. २३.
अर्थ :शुद्ध चिद्रूपनी प्राप्ति नयोने आधीन छे एम जुओ.
त्यार पछी आत्मस्वरूप नयादि रहित छे. २३.✽✽