Tattvagyan Tarangini-Gujarati (Devanagari transliteration).

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अध्याय-९ ][ ७५
चेतनाचेतने रागो द्वेषो मिथ्यामतिर्मम
मोहरूपमिदं सर्वंचिद्रूपोऽहं हि केवलः ।।।।
जM चेतनरुप सर्व अन्यमां राग-द्वेष मिथ्यामति ते,
ए सौ मोहरुप हुं केवल चिद्रूप तेथी स्मरुं अति ते. ४.
अर्थ :चेतन अने जड पदार्थोमां राग अने द्वेष (करवा ते)
मारी मिथ्याबुद्धि छे; आ बधुं मोहनुं स्वरूप छे, हुं केवळ चिद्रूप ज
छुं. ४.
देहोऽहं मे स वा कर्मोदयोऽहं वाप्यसौ मम
कलत्रादिरहं वा मे मोहोऽदश्चिंतनं किल ।।।।
शरीर हुं छुं; ते मारुं छे, कर्म उदय हुं, ते मारो,
स्त्री आदिकमां हुं मारुं, ए चिंतन जाणो मोह खरो. ५.
अर्थ :हुं शरीर छुं, अथवा ते मारुं छे, हुं कर्मनो उदय छुं,
अथवा ते पण मारो छे, स्त्री आदि हुं छुं अथवा ते मारां छे. आवुं
चिंतन (करवुं ते) खरेखर मोह छे. ५.
तज्जये व्यवहारेण संत्युपाया अनेकशः
निश्चयेनेति मे शुद्धचिद्रूपोऽहं स चिंतनं ।।।।
ते जय करवा काज उपायो छे बहुविधिा व्यवहार कहे;
हुं निर्मल चिद्रूप, ते मारुं, चिंतन निश्चय ए ज ग्रहे. ६.
अर्थ :तेना जयमां व्यवहारथी अनेक उपायो छे (पण)
निश्चयथी ‘हुं शुद्ध चिद्रूप छुं’, ‘ते ज मारुं छे’, एवुं चिंतन ए एक
ज उपाय छे. ६.
धर्मोद्धारविनाशनादि कुरुते कालो यथा रोचते
स्वस्यान्यस्य सुखासुखं वरखजं कर्मैव पूर्वार्जितं