Tattvagyan Tarangini-Gujarati (Devanagari transliteration).

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८६ ][ तत्त्वज्ञान-तरंगिणी
गाय अश्व गज धान पक्षी दुकान मंदिर नहि मुज धााम,
देश नगर नृप पण मारां नहि निर्ममत्व चिंतन ए पाम. ११-१२.
अर्थ :शुभाशुभ कर्मो मारां नथी, शरीर पण मारुं नथी.
पिता, माता, बहेन, भाई, स्त्री, पुत्र, पुत्री मारां नथी. गाय, अश्व,
हाथी, धन, पक्षी, बजार, घर मारां नथी. नगर, राजा, देश मारां नथी;
एवुं चिंतवन ते निर्ममत्व छे. ११-१२
ममेति चिंतनाद् बंधो मोचनं न ममेत्यतः
बंधनं द्वयक्षराभ्यां च मोचनं त्रिभिरक्षरैः ।।१३।।
निर्ममत्वं परं तत्त्वं ध्यानं चापि व्रतं सुखं
शीलं खरोधनं तस्मान्निर्ममत्वं विचिंतयेत् ।।१४।।
‘मारुं’ ए चिंतनथी बंधान, मोक्ष ‘न मारुं’ जो द्रढ थाय,
बंधान बे अक्षरथी, मुकित त्रण अक्षरथी एम सधााय;
निर्ममता ए परमतत्त्व छे, धयान वळी व्रत ए सुखसार,
शील परम £न्द्रियनिग्रह ए, तेथी चिंतन ए उर धाार. १३-१४.
अर्थ :मारुं एवा चिंतवनथी बंधन अने मारुं नहि एवा
चिंतवनथी मोक्ष थाय छे, माटे बे अक्षरो वडे बंधन अने (न मम)
त्रण अक्षरोथी मोक्ष थाय छे. १३.
निर्ममता ते श्रेष्ठ तत्त्व छे, (ते ज) ध्यान अने व्रत, सुख, शील,
(तेम ज) इन्द्रियनिरोध छे, माटे निर्ममतानुं चिंतवन कर्तव्य छे. १४.
याता ये यांति यास्यंति भदंता मोक्षमव्ययं
निर्ममत्वेन ते तस्मान्निमर्मत्वं विचिंतयेत् ।।१५।।
निर्ममत्वे तपोऽपि स्वादुत्तमं पंचमं व्रतं
धर्मोऽपि परमस्तस्मान्निर्ममत्वं विचिंतयेत् ।।१६।।
पाम्या अव्यय मुकित पामे, वळी पामशे मुनि त्रिकाळ:
ते सौ निर्ममताथी, माटे निर्ममताचिंतन उर धाार.