Tattvagyan Tarangini-Gujarati (Devanagari transliteration).

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अध्याय-१० ][ ८५
शुभाशुभानि कर्माणि मम देहोऽपि वा मम
पिता माता स्वसा भ्राता मम जायात्मजात्मजः ।।।।
गौरश्वोऽजो गजो रा विरापणं मंदिरं मम
पूः राजा मम देशश्च ममत्वमिति चिंतनम् ।।।।युग्मं।।
कर्म शुभाशुभ ते सौ मारां, शरीर पण मुज, मारुं नाम,
मातपितादि भगिनी भ्राता स्त्री पुत्रादि मुज तमाम;
गाय अश्व अज गज धान, पक्षी दुकान मंदिर मारां धााम,
मारां देश नगर नृप आदि ममत्व ए चिंतननुं नाम. ८-९
अर्थ :शुभाशुभ कर्म ते मारां छे, अथवा शरीर पण मारुं
छे. माता-पिता, भाई-बहेन मारां छे. पुत्र-पुत्री-स्त्री मारां छे. गाय,
अश्व, बकरो, हाथी, धन, पक्षी, दुकान, मकान वगेरे मारां छे. नगर
मारुं छे. राजा, देश मारां छे; एवुं चिंतवन ते ममत्व छे. ८-९.
निर्ममत्वेन चिद्रूपप्राप्तिर्जाता मनीषिणां
तस्मात्तदर्थिना चिंत्यं तदेवैकं मुहूर्मुहुः ।।१०।।
निर्ममताथी चिद्रूप प्राप्ति पाम्या पूर्वे बहु मतिमान;
तेथी निर्ममता चिंतववा क्षणक्षण आत्मार्थी दे धयान. १०.
अर्थ :विद्वानोने निर्ममत्वभाव वडे चिद्रूपनी प्राप्ति थई छे,
माटे तेना अर्थीए ते ज एकेने वारंवार चिंतववुं जोईए. १०.
शुभाशुभानि कर्माणि न मे देहोऽपि नो मम
पिता माता स्वसा भ्राता न मे जायात्मजात्मजः ।।११।।
गौरश्वो गजो रा विरापणं मंदिरं न मे
पू राजा मे न देशो निर्ममत्वमिति चितनं ।।१२।।युग्मं।।
कर्म शुभाशुभ ते नहि मारां, शरीर पण नहि मारुं कांइ,
मात पिता के भगिनी भ्राता, स्त्री पुत्रादि मारां नांहि;