Yogsar Doha-Gujarati (Devanagari transliteration). Gatha: 12.

< Previous Page   Next Page >


Page 7 of 58
PDF/HTML Page 17 of 68

 

background image
देहादिक जे पर कह्यां, ते निजरूप न थाय;
एम जाणीने जीव तुं, निजरूपने निज जाण. ११
अन्वयार्थ[देहादयः] देहादि [ये परे कथिताः] के जे ‘पर’
कहेवामां आवे छे [ते] ते [आत्मा न भवन्ति] निजरूप नथी[इति
ज्ञात्वा] एम जाणीने [जीव] हे जीव! [त्वं] तुं [आत्मानं] पोताने
[आत्मा] निजरूप [मन्यस्व] जाण. ११.
आत्मज्ञानी ज निर्वाण पामे छेः
अप्पा अप्पउ जइ मुणहि तो णिव्वाणु लहेहि
पर अप्पा जइ मुणहि तुहुं तो संसार भमेहि ।।१२।।
आत्मा आत्मानं यदि मन्यसे ततः निर्वाणं लभसे
परं आत्मानं यदि मन्यसे त्वं ततः संसारं भ्रमसि ।।१२।।
निजने जाणे निजरूप, तो पोते शिव थाय;
पररूप माने आत्माने, तो भवभ्रमण न जाय. १२
अन्वयार्थ[यदि] जो तुं [आत्मानं] पोताने [आत्मा]
पोतारूप [मन्यसे] जाणीश, [ततः] तो तुं [निर्वाणं] निर्वाणने [लभसे]
पामीश तथा [यदि] जो [त्वं] तुं [आत्मानं] पोताने [परं] पररूप [मन्यसे]
मानीश, [ततः] तो [संसारं] संसारमां [भ्रमसि] भमीश. १२.
इच्छा वगरनुं तप ज निर्वाणनुं कारण छेः
इच्छा-रहियाउ तव करहि अप्पा अप्पु मुणेहि
तो लहु पावहि परम-गई फु डु संसारु ण एहि ।।१३।।
इच्छारहितः तपः करोषि आत्मा आत्मानं मन्यसे
ततः लघु प्राप्नोषि परमगतिं स्फु टं संसारं न आयासि ।।१३।।
योगसार
[ ७