Yogsar Doha-Gujarati (Devanagari transliteration). Gatha: 10-11.

< Previous Page   Next Page >


Page 6 of 58
PDF/HTML Page 16 of 68

 

background image
६ ]
योगीन्दुदेवविरचितः
अन्वयार्थजे [निर्मलः] निर्मल, [निष्कलः] निष्कल,
[शुद्धः] शुद्ध, [जिनः] जिन, [विष्णुः] विष्णु, [बुद्धः] बुद्ध, [शिवः] शिव
अने [शांतः] शांत छे, [सः] ते [परमात्मा जिनभणितः] परमात्मा छे
एम जिनभगवाने कह्युं छे, [एतत् निर्भ्रांतं जानीहि] ए वातने तमे
निःशंक जाणो. ९.
बहिरात्मा परने पोतारूप माने छेः
देहादिउ जे परि कहिया ते अप्पाणु मुणेइ
सो बहिरप्पा जिणभणिउ पुणु संसारु भमेइ ।।१०।।
देहादयः ये परे कथिताः तान् आत्मानं मन्यते
स बहिरात्मा जिनभणितः पुनः संसारं भ्रमति ।।१०।।
देहादिक जे पर कह्यां, ते माने निजरूप;
ते बहिरातम जिन कहे, भमतो बहु भवकूप. १०
अन्वयार्थ[ये देहादयः] जे देहादि [परे] पर [कथिताः]
कहेवामां आव्या छे [तान्] तेमने जे [आत्मानं] पोतारूप [मन्यते]
माने छे. [सः] ते [बहिरात्मा जिनभणितः] बहिरात्मा छे एम
जिनभगवाने कह्युं छे, ते [पुनः] वारंवार [संसारं] संसारमां [भ्रमति]
भमे छे. १०.
गुरु-उपदेश
देहादिउ जे परि कहिया ते अप्पाणुं ण होहिं
इउ जाणेविणु जीव तुहुं अप्पा अप्प मुणेहि ।।११।।
देहादयः ये परे कथिताः ते आत्मा न भवन्ति
इति ज्ञात्वा जीव ! त्वं आत्मा आत्मानं मन्यस्व ।।११।।