Atmadharma magazine - Ank 287
(Year 24 - Vir Nirvana Samvat 2493, A.D. 1967)
(Devanagari transliteration).

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: १२ : आत्मधर्म : भादरवो : २४९३
क्रिया तो मारी छे, ने आ शरीरनी क्रियाओ मारी नथी पण जडनी छे–आम जाणनार
भेदज्ञानी धर्मात्माने शरीरादिमां पोतापणानी कल्पना कदी थती नथी. चेतनागुण तो
आत्मानो छे, ते कांई शरीरनो नथी, शरीर तो चेतनारहित जड छे,–एवुं जाणनार ज्ञानी
पोतानी ज्ञानक्रियाने शरीरमां नथी जोडता, आ ईन्द्रियो वडे हुं जाणुं छुं–एम नथी मानता,
तेमज शरीरनी क्रियाओ माराथी थाय छे–एम पण कदी मानता नथी. शरीरने अने
आत्माने भिन्नभिन्न जाणीने आत्मामां ज ज्ञानने जोडे छे–तेमां ज एकता करे छे.
आत्मा जाणनार अंदर बेठो छे माटे आत्माने लीधे देहादिनी हालवा–चालवा–
बोलवानी क्रियाओ व्यवस्थित थाय छे–एम नथी. आत्मा जाणनार–देखनार छे ते
शरीरादिनी क्रियाओ पण जाणनार ज छे, पण तेनी क्रियानो करनार आत्मा नथी.
प्रश्न:– आत्मा न होय त्यारे केम शरीरनी क्रिया थती नथी?
उत्तर:– आत्मा न होय त्यारे शरीर स्थिर रहेलुं छे ते पण तेनी एक क्रिया ज
छे, ते वखते पण तेनामां अनंता रजकणो क्षणे क्षणे आवे छे ने जाय छे. जेम चालवुं ते
एक क्रिया छे तेम स्थिर रहेवुं ते पण एक क्रिया छे. आत्मा होय त्यारे पण शरीरनी
क्रिया शरीरथी थाय छे, ने आत्मा न होय त्यारे पण शरीरनी क्रिया शरीरथी ज थाय
छे. आत्मा तो ज्ञानक्रियानो ज करनार छे. आत्मा होय ने भाषा बोलाय, त्यां खरेखर
आत्मा ते भाषानो जाणनार ज छे, पण अज्ञानी भ्रमथी एम माने छे के “हुं भाषा
बोल्यो.” ज्ञानी पोतानी ज्ञानक्रिया सिवाय देहादिनी कोई क्रियाने पोतानी मानता नथी;
ते तो ज्ञानस्वभावने ज पोतानो जाणीने तेमां ज एकाग्रता करे छे.
।। ९२।।
अज्ञानी बहिरात्मानी बधी अवस्थाओ भ्रमरूप छे, ने ज्ञानी अंतरात्मा सर्व
अवस्थाओमां भ्रांतिरहित ज छे,–एम हवे कहे छे–
सुप्तोन्मत्ताद्यवस्थैव विभ्रमोऽनात्मदर्शिनाम्।
विभ्रमोऽक्षीणदोषस्य सर्वावस्थाऽऽत्मदर्शिनः।।९३।।
बहिरात्माने एम लागे छे के सुप्त के उन्मत्त अवस्था ते ज भ्रमरूप छे, जागृत
दशा वखते तेने भ्रम लागतो नथी; पण ज्ञानी तो जाणे छे के जे बहिरात्मा छे तेनी
बधी ज अवस्था भ्रमरूप छे; ते भले भणेलो–गणेलो ने डाह्यो होय, जागतो होय,
तोपण पोताने देहादिरूप मानतो होवाथी ते भ्रममां ज पडेलो छे, मोहथी ते उन्मत्त ज
छे. जगत कहे छे के डाह्यो छे, ज्ञानी कहे छे के गांडो छे. हुं चैतन्य छुं एवुं जेने भान
नथी ने देहने ज पोतानो मानी रह्या छे ते गांडा ज छे.
अने तेथी ऊलटुं लईए तो, ज्ञानी धर्मात्मानी बधी अवस्थाओ भ्रमरहित ज
छे. कदाचित उन्मत्त जेवा देखाय के ऊंघमां