चैत्र २४९४ : आत्मधर्म : ३९
वाघ अने सिंह
गतांकना वाघनुं द्रश्य (जे भूलथी
हैदराबादनुं लखाई गयेल ते) मैसुरनुं हतुं,
अने आ सिंहनुं द्रश्य हैदराबादनुं छे. परंतु
ओलो वाघ तो साचो हतो, पण आ सिंह
साचो नथी, आ तो पथ्थरमां कोतरेलो छे.
ए कोतरेलो सिंह एनी मस्तीमां मस्त छे
तो गुरुदेव पोतानी मस्तीमां मस्त छे. ए
तो विचारी रह्या छे के ‘वळी पर्वतमां वाघ–
सिंह संयोग जो...अडोल आसन ने मनमां
नहि क्षोभता, परम मित्रनो जाणे पाम्या
योग जो...’
एवी मुनिदशानो धन्य अवसर कयारे आवशे? (हैदराबादनुं म्युझीयम–के जे
भारतमां सौथी मोटुं गणातुं–ते जोयुं, परंतु एमां एवी कोई विशेषता न देखाणी के जे
गुरुदेवने आश्चर्य उपजावे. नीरसपणे ऊडतुं अवलोकन करीने त्यांना एक ओटला उपर
बेठाबेठा गुरुदेव कंईक चिन्तन करी रह्या छे.)
* नाईरोबी (आफ्रिका) मां भाईश्री रायचंद धरमशी चेलावाळा ता.६–३–६८ ना रोज स्वर्गवास
पाम्या छे. मोशी (आफ्रिका) मां तेमणे घरमां नानुं सरखुं मंदिर बनावेलुं, ने मुमुक्षुमंडळना बधा
कार्यक्रमो त्यां थता हता.
* आटकोट मुकामे भाईश्री चुनीलाल नारणजी ता.२७–२–६८ ना रोज स्वर्गवास पाम्या छे.
* भाईश्री हिंमतलाल हरखचंदना मातुश्री समरतबेन मोरबी मुकामे फागण सुद १४ ना रोज
स्वर्गवास पाम्या छे.
* लाखणकामां भाईश्री मनसुखलाल आणंदजी गत फागण सुद १४ ना रोज स्वर्गवास पाम्या छे.
(ब्र.गुलाबचंदभाईना ते नाना भाई हता.)
* मुंबई विलेपारलेमां भाईश्री रतिलाल हीराचंद (मोरबीवाळा धारशीभाईना बनेवी) फागण वद
एकमना रोज स्वर्गवास पाम्या छे. स्वर्गस्थ आत्माओ वीतरागी देव–गुरु–धर्मना शरणे आत्महित पामो.