Atmadharma magazine - Ank 001
(Year 1 - Vir Nirvana Samvat 2470, A.D. 1944)
(Devanagari transliteration).

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: मागशर : २००० आत्मधर्म : ३ :
शाश्वत सुखनो मार्ग दर्शावतुं मासिक
आत्मधर्म
वर्ष १ : : अंक १
मागशर : : २०००
* मळमग रहस्य *
मूळ मारग सांभळो जिननो रे, करी वृत्ति अखंड सन्मुख; मूळ.
नो’य पूजादिनी जो कामना रे, नो’य व्हालुं अंतर भवदुःख. ,, १
करी जोजो वचननी तुलना रे, जो जो शोधीने जिन सिद्धांत, ,,
मात्र कहेवुं परमारथ हेतुथी रे, कोई पामे मुमुक्षु वात. ,, २
ज्ञान, दर्शन, चारित्रनी शुद्धता रे, एक पणे अने अविरुद्ध, ,,
जिन मारग ते परमार्थथी रे, एम कह्युं सिध्धांते बुध्ध. ,, ३
लिंग अने भेदो जे व्रतना रे, द्रव्य देश काळादि भेद, ,,
पण ज्ञानादिनी जे शुध्धता रे, ते तो त्रणे काळे अभेद. ,, ४
हवे ज्ञान दर्शनादि शब्दनो रे, संक्षेपे सूणो परमार्थ; ,,
तेने जोतां विचारी विशेषथी रे, समजाशे उत्तम आत्मार्थ. ,, प
छे देहादिथी भिन्न आत्मा रे, उपयोगी सदा अविनाश; ,,
एम जाणे सद्गुरु उपदेशथी रे, कह्युं ज्ञान तेनुं नाम खास. ,, ६
जे ज्ञाने करीने जाणियुं रे, तेनी वर्ते छे शुद्ध प्रतीत, ,,
कह्युं भगवंते दर्शन तेहने रे, जेनुं बीजुं नाम समकीत. ,, ७
जेम आवी प्रतीति जीवनी रे, जाण्यो सर्वथी भिन्न असंग, ,,
तेवो स्थिर स्वभावते उपजे रे, नाम चारित्र ते अणलिंग. ,, ८
ते त्रणे अभेद परिणामथी रे, ज्यारे वर्ते ते आत्मारूप, ,,
तेह मारग जिननो पामियो रे, किंवा पाम्यो ते निज स्वरूप. ,, ९
एवा मूळ ज्ञानादि पामवा रे, अने जवा अनादि बंध, ,,
उपदेश सद्गुरुनो पामवा रे, टाळी स्वच्छंद ने प्रतीबंध. ,, १०
एम देव जिनंदे भाखियुं रे, मोक्ष मार्गनुं शुद्ध स्वरूप, ,,
भव्य जनोना हितने कारणे रे, संक्षेपे कह्युं स्वरूप. ,, ११
श्रीमद् राजचंद्र